भोपाल।
बसपा सुप्रीमो मायावती की चेतावनी के बाद कमलनाथ सरकार ने अप्रैल 2018 में भारत बंद के दौरान एससी-एसटी समुदाय के लोगों पर दर्ज किए गए केस वापस लेने का फैसला किया है, जिसको लेकर सपाक्स समाज संस्था (सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक कल्याण समाज संस्था) ने आपत्ति जताई है।सपाक्स ने कांग्रेस को चेतावनी देते हुए कहा है कि सरकार एक पक्षीय निर्णय लेती है, तो संस्था इस सरकार के खिलाफ जनांदोलन खड़ा करेगी।
दरअसल, बसपा प्रमुख मायावती ने सोमवार को राजस्थान और मध्यप्रदेश की कांग्रेस सरकार से भारत बंद के दौरान एससी-एसटी समुदाय के लोगों पर दर्ज किए गए मुकदमों को वापस लेने की मांग की थी। उन्होंने ऐसा न होने पर मप्र और राजस्थान में कांग्रेस सरकारों से समर्थन पर दोबारा विचार करने की चेतावनी भी दी थी। सरकार गिराने की धमकी से कांग्रेस बैकफूट पर आ गई और मंगलवार को कानून मंत्री पीसी शर्मा ने बयान जारी कर कहा कि 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद और दलित हिंसा के बाद लगाए गए केस भी वापस लिए जाएंगें। उन्होंने कहा कि भारत बंद की तरह पिछले 15 सालों में भाजपा सरकार की ओर से कार्यकर्ताओं पर राजनीतिक मंशा के तहत लगाए गए सभी केस वापस लिए जाएंगे। हालांकि, तीन दिन पहले ही शर्मा ने कहा था कि राज्य में भाजपा सरकार के दौरान कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर दर्ज हुए राजनीतिक मुकदमे वापस लिए जाएंगे।
इस पर सपाक्स ने आपत्ति जताई है। सपाक्स के अध्यक्ष डॉ. केएल साहू ने बयान जारी कर कहा है कि एट्रोसिटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले के खिलाफ एक वर्ग विशेष ने दो अप्रैल 2018 को भारत बंद का आव्हान किया था। इस दौरान जिन लोगों ने खुलेआम हिंसा फैलाई, सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया और जनसामान्य को परेशान किया, उनके खिलाफ दर्ज मामले सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के चलते वापस लिए जा रहे हैं। कांग्रेस सरकार भी इस मामले में पिछली सरकार की नीतियों को अपना रही है। यह जानते हुए भी कि पूर्व सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है। उन्होंने कहा कि हम सरकार से मांग करते हैं कि सामाजिक ताने-वाने को तहस-नहस करने वाले निर्णय न लें और विधि मंत्री के बयान के माफिक निर्णय लिया गया है, तो उसे वापस लें। संस्था ने चेतावनी दी है कि सरकार एक पक्षीय निर्णय लेती है, तो संस्था इस सरकार के खिलाफ भी जनांदोलन खड़ा करेगी।