मध्य प्रदेश में भाजपा की सरकार को अस्तित्व में आए एक हफ्ता बीतने जा रहा है लेकिन कोरोना की भयानक महामारी के बीच मध्यप्रदेश में सरकार के नाम पर केवल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान है। प्रदेश में मंत्रिमंडल का गठन अभी तक नहीं हुआ है हालांकि शपथ लेने के तुरंत बाद मुख्यमंत्री ने अपनी प्राथमिकता कोरोना से निपटना बताया था लेकिन इन सबके बीच कमलनाथ से बगावत कर कांग्रेस से इस्तीफा देने वाले 22 विधायकों की हालत पतली है ।
इनमें से छह ऐसे हैं जो कमलनाथ सरकार में मंत्री थे। इनमें इमरती देवी, प्रद्युम्न सिंह तोम,र महेंद्र सिंह सिसोदिया, तुलसीराम सिलावट ,प्रभु राम चौधरी और गोविंद सिंह राजपूत शामिल है। जब इन लोगों ने कांग्रेस छोड़ी थी तब बीजेपी ने उन्हें आश्वासन दिया था कि नई सरकार बनते ही इन्हें मंत्री बनाया जाएगा ।इसके अलावा एन्दल सिंह कंसाना, बिसाहू लाल सिंह ,राजवर्धन सिंह दत्ती गांव और हरदीप सिंह डंग ने भी अपनी निष्ठाये मंत्री बनने की शर्त पर ही बदली थी। अब आलम यह है कि यह ना तो मंत्री रहे न विधायक, उल्टे कांग्रेस की सदस्यता भी चली गयी।
बीजेपी में इनकी स्थिति अब नई नवेली बहू की तरह है जो घूघट किए चुपचाप आदेशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं ।कांग्रेस से उलट बीजेपी कैडर बेस्ड अनुशासनात्मक पार्टी मानी जाती है और यहां यह स्थिति नहीं है कि सिंधिया समर्थक कोई कांग्रेसी दिग्विजय समर्थक किसी कांग्रेसी या उसके नेता के ऊपर कटाक्ष करता रहे और उस पर कार्रवाई ना हो। अब क्योंकि इन सभी विधायकों को चुनाव लड़ना है और जीतना भी सो है किसी भी हालत में किसी भी तरह की बगावती बातें कर भी नहीं सकते। कुल मिलाकर कम से कम उन छह पूर्व विधायकों की हालत तो इस कदर भी बेहाल है कि ना तो मंत्री रहे न विधायक और अब कुल मिलाकर शिवराज की मर्जी पर निर्भर है कि वह उन्हें कब मंत्री बनाते हैं। उनके राजनीतिक आका ज्योतिरादित्य सिंधिया खुद केंद्र में मंत्री बनने के लिए वेटिंग में है सो वे इन लोगो की कितनी लामबंदी कर पाएंगे, यह समझ में सहज आ जाता है।