एम्स भोपाल में गुलियन बैरे सिंड्रोम का सफल उपचार, 2 महीने वेंटिलेटर पर रहने के बाद स्वस्थ होकर घर लौटी मासूम

BHOPAL  AIIMS  NEWS : एम्स भोपाल के बाल रोग विभाग के आईसीयू वार्ड में 107 दिनों के लंबे समय तक रहने के बाद गुलियन-बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) से पीड़ित 5 वर्षीय बच्ची के सफल उपचार के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी।

2 महीने वेंटिलेटर पर रहने के बाद हुई स्वस्थ 

मरीज को एम्स, भोपाल के बाल रोग विभाग में बढ़ती कमजोरी, अंगों को हिलाने में असमर्थता और सांस लेने में बढ़ती कठिनाई की शिकायत के साथ भर्ती कराया गया था। बाल रोग विभाग के सलाहकारों, रेजिडेंट डॉक्टरों और नर्सों की एक समर्पित टीम ने मरीज को चौबीसों घंटे देखभाल और पुनर्वास प्रदान किया, जिससे यह सुनिश्चित हुआ कि मरीज को सर्वोत्तम संभव उपचार मिले। रोगी ने उल्लेखनीय प्रगति दिखाई और इस चुनौतीपूर्ण स्थिति पर काबू पाकर 2 महीने के लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद घर लौट रही है। मरीज को अभी ट्रेकियोस्टोमाइज्ड किया गया है। अब वह अपने हाथ पैरों को हिलाने में भी सक्षम है। पूरी तरह से ठीक होने के लिए अब मरीज को फिजियोथेरेपी और आउट पेशेंट फॉलो-अप जारी रखना होगा । बाल चिकित्सा सर्जरी, ईएनटी, प्रयोगशाला सहायता और उसके परिवार के साथ मिलकर मेडिकल टीम के संयुक्त प्रयासों ने इस सफल परिणाम में महत्वपूर्ण योगदान दिया। एम्स भोपाल के कार्यपालक निदेशक प्रोफेसर (डॉ ) अजय सिंह ने पूरी टीम को इस उपलब्धि के लिए बधाई दी है।

क्या है गुलियन बैरे सिंड्रोम
क्या है गुलियन बैरे सिंड्रोम (जी बी एस) यह एक दुर्लभ न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है, जिसमें शरीर का इम्यून सिस्टम, जो आमतौर पर बीमारियों से बचाता है, अचानक शरीर को ही अटैक करना शुरू कर देता है। इसी वजह से इसे ऑटो इम्यून डिसऑर्डर भी कहा जाता है। आसान भाषा में कहें, तो इस सिंड्रोम से जूझ रहे व्यक्ति को बोलने में, चलने में, निगलने में, मल त्यागने में या रोज की आम चीजों को करने में दिक्कत आती है। यह स्थिति समय के साथ और खराब होती जाती है। गुलियन बैरे सिंड्रोम एक ऐसा विकार है, जिसमें रोगी के शरीर में पहले सिहरन या दर्द होने लगता है और फिर उसके बाद उसकी मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं।


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Sushma Bhardwaj

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