भोपाल
शिवराज सरकार के पहले कमलनाथ सरकार को समर्थन दे रहे सपा-बसपा के तीन और चार निर्दलीय विधायकों के शिवराज मंत्रिमंडल के प्रस्तावित गठन में शामिल होने को लेकर राजनीतिक हलकों में असमंजस की स्थिति बनी हुई है।
दरअसल जब विधानसभा चुनाव के परिणामों के बाद कांग्रेस 114 और भाजपा 109 सदस्यों के आंकड़े पर आकर टिकी थी और बहुमत के लिये 230 सदस्यीय विधानसभा मे 116 सदस्यो की जरूरत थी, तब सबकी निगाहें सपा विधायक राजेश शुक्ला, बसपा विधायक संजीव सिंह कुशवाह और रामबाई तथा चार निर्दलीय विधायकों बुरहानपुर सीट से ठाकुर सुरेंद्र नवल सिंह, सुसनेर से विक्रम सिंह राणा, खरगौन से केदार डावर और वारासिवनी से प्रदीप जायसवाल पर टिकी थी जिन्होंने कांग्रेस को समर्थन देकर कमलनाथ सरकार बनवा दी थी। इन सब को तभी आश्वासन दिया गया था कि उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा लेकिन उम्मीद टूटती गई और प्रदीप जायसवाल के अलावा इनमें से कोई भी मंत्री नहीं बन पाया और यही कारण था कि जैसे ही ऑपरेशन लोटस संपन्न हुआ और कमलनाथ की सरकार गिरी वैसे ही इन सभी ने पाला बदल लिया और भाजपा को समर्थन दे दिया।
इस बार भी सबकी उम्मीद वही कि मंत्रिमंडल में जगह मिल जाए लेकिन सबसे बड़ी दुविधा शिवराज के सामने यह है कि मंत्रिमंडल में अधिकतम 35 सदस्य हो सकते हैं जिनमें से पहले दस के लिए वे 22 बागी विधायकों से दस को, जिनमे कई सिंधिया समर्थक शामिल है ,हामी भर चुके हैं। बचे 25 स्थानों के लिए बीजेपी के करीब 45 सीनियर विधायक टकटकी लगाए बैठे हैं। अब ऐसे में यदि सपा बसपा या निर्दलीय किसी भी विधायक को मंत्री बनाया जाता है तो फिर सातों को मंत्री बनाना पड़ेगा जो व्यावहारिक रूप से इसलिए संभव नहीं लगता क्योंकि इसके चलते फिर बीजेपी में ही असंतोष काफी बढ़ जाएगा ।वैसे भी अब सपा बसपा और निर्दलीयों की कोई खास जरूरत भी बीजेपी को इसलिए नहीं क्योंकि उसे पूरा विश्वास है कि आने वाले 24 उपचुनाव में से वह इतनी सीटे तो हासिल कर ही लेगी कि आसानी के साथ विधानसभा में अपने दम पर सरकार चला सके ।कुल मिलाकर सपा बसपा और निर्दलीय विधायकों का भविष्य वही लगता है जो कमलनाथ सरकार में था बल्कि पिछली सरकार मे मंत्री रह चुके प्रदीप जायसवाल भी इस बार नाउम्मीद होगे,यह भी तय है।