गुमनामी के अंधेरे में यह कद्दावर नेता, सियासी विरासत संभालने में नाकाम रहे बच्चे

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भोपाल। एक समय में मध्य प्रदेश की राजनीति में अपना खासा प्रभाव रखने वाले कई कद्दावर नेता गुमनामी के अंधेरे में हैं। कुछ दिवंगत हो चुके तो कुछ फुर्सत में समय गुजार रहे, लेकिन इनके परिवार में मौजूदा पीढ़ी का कोई भी सदस्य सक्रिय राजनीति में आकर दादा-पड़दादा एवं पिता की विरासत को नहीं संभाल पाया है। राजकपूर के पसंदीदा दोस्त और फिल्मी गीतकार रहे पूर्व मंत्री बिल्ला भाई पटेल से लेकर पन्ना राजघराने में एक प्रकार से सियासत सिमटकर रह गई है।

दमोह जिले में भाजपा से बगावत कर रहे चार बार के सांसद एवं मध्य प्रदेश में एक बार कृषि मंत्री रहे रामकृष्ण कुसमरिया 60 की उम्र पार कर चुके हैं। वह स्वयं संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन उनके तीन में से एक भी पुत्र कुसमारिया की तरह प्रखर राजनैतिक चेहरा नहीं बन पाया है। यहां तक कि इनके पुत्र ने जिला और जनपद सदस्य जैसे चुनाव में दांव अजमाया, सफलता हाथ नहीं लग पाई थी। इस बार चर्चएं थीं कि कुसमारिया अपने किसी पुत्र को टिकट दिला सकते हैं, लेकिन उन्होंने स्वयं राजनगर एवं पथरिया से निर्दलीय नामांकन कर जता दिया कि अभी उनके राजनैतिक कद के आगे परिवार में कोई सक्षम नहीं है। कुसमारिया के ही रिश्तेदार पहले उमाभारती और फिर शिवराज सरकार के प्रथम कार्यकाल में मंत्री रहे।


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