भोपाल। इस समय विधान सभा चुनाव को लेकर सियासत गर्म है। लेकिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे 11 दिसंबर को घोषित कर दिए जाएंगे। इसके बाद से ही देश में औपचारिक रूप से 2019 लोकसभा चुनाव के लिए चुनावी रण तैयार हो जाएगा। लेकिन वो कौन से मुद्दे रहे जिन्होंने भाजपा के खिलाफ अंतिम दौर में माहौल तैयार कर दिया। वह मुद्दे जो वर्तमान सरकार के लिए गले की फांस बन गए और अब नतीजों पर भी उनका असर देखने को मिल सकता है। वहीं, प्रदेश में भाजपा की लहर को अपने ओर करने का प्रयास कांग्रेस ने एक बड़ा दांव चल कर किया। इससे प्रदेश में सत्ता परिवर्तन का सुर उठने लगा। आइये नतीजों से पहले जानते हैं सरकार बनने और बिगड़ने के पीछे क्या हो सकते हैं कारण।
विधानसभा चुनाव की तैयारियों के लिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमर कसी और पूरा प्रदेश नापने जुलाई में जन आशीर्वाद यात्रा पर निकल गए। इस दौरान उन्होंने भाजपा के पक्ष में माहौल तैयार करने में पूरा जोर और ताकत झोंक दी। लेकिन सितंबर में एससी एसटी एक्ट के मामले ने तूल पकड़ा और सर्वणों ने भाजपा और कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। प्रदेश भर में मंत्रियों से लेकर स्वयं सीएम को भी काले झंडे दिखाए गए। मंत्रियों का धेराव किया गया और उनको कई जगह भारी विरोध का सामना करना पड़ा दरअसल, वर्ष 2016 में भोपाल में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सरकारी कर्मचारियों के एक संगठन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा था कि कोई माई का लाल आरक्षण को खत्म नहीं कर सकता है।
सवर्णों के स्वाभिमान को पहुंची ठेस
चुनाव के दौरान सवर्ण वर्ग ने मुख्यमंत्री के बयान को लेकर अपना विरोध जताया है। सवर्णों का मानना है कि मुख्यमंत्री की यह टिप्पणी अहंकार और अभिमान को दर्शाती हैं। मुख्यमंत्री की इस टिप्पणी से सवर्ण वर्ग के स्वाभिमान को ठेस पहुंची है। सपाक्स ने इसका पूरा फायदा उठाते हुए इस मुद्दे पर जमकर राजनीति की। यही नहीं इसमें करणी सेना ने भी सपाक्स का साथ दिया। इसका खामियाजा कांग्रेस से ज्यादा भाजपा को उठाना पड़ सकता है। सवर्ण वोट बैंक इस बार कांग्रेस या फिर किसी तीसरे दल के पक्ष में जाने की संभावना है। हालांकि भाजपा नेताओं का दावा है कि उनके पारंपरिक वोटर ने भाजपा को ही वोट दिया है। और इन मुद्दों से चुनाव पर असर नहीं पड़ेगा।
छाया रहा किसानों का मुद्दा
प्रदेश में कांग्रेस किसानों के मुद्दों को भुनाने में कुछ हद तक कामयाब रही। सरकार को एक ही मोर्चे पर घेरने के साथ कांग्रेस ने किसानों की हमदर्दी लेने का पूरा प्रयास भी किया। वोटिंग से ऐन समय पहले कमलनाथ ने कर्जमाफी और कई बड़े ऐलान कर भाजपा की झोली से पूरा माहौल अपनी ओर करने का प्रयास किया। अब वह इसमें कितने कामयाब हुए यह तो सुबह मतगणना के बाद साफ हो जाएगा। लेकिन ऐन समय पर किए गए इस ऐलान ने किसान का वोटबैंक कांग्रेस की ओर मोड़ दिया। खासतौर से मालवा क्षेत्र में किसानों पर इसका प्रभाव देखने को मिला है। किसानों ने कर्ज माफी के ऐलान के बाद बैंक में जमा करने वाली राशि रोक ली है। अगर कांग्रेस आती है तो वह दस दिन में किसानों का दो लाख तक का कर्ज माफ करेगी। इससे किसान को बड़ी राहत मिल सकती है। किसान भी आस लगाए बैठा है अगर सत्ता परिवर्तन हुआ तो उनको लाभ मिलेगा।