भोपाल।शरद व्यास।
कहा जाता हैं सत्ता के नाव की सवारी आसान नहीं होती.. बीच मझधार जब लहरें तेज होती हैं तो नाव किनारे लगाना अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। खासतौर पर मध्यप्रदेश(MadhyPradesh) की सियासत पिछले दो महीने से हिचकोले ले रही है। देखने में सबकुछ कभी सामान्य दिखता है, लेकिन हकीकत में सत्ता और विपक्ष दोनों ही अंतरद्वंद्व की स्थिति में हैं। कहीं मंत्रिमंडल में नए चेहरों को स्थान देने के लिए सूची फाइनल करते समय पसीने से तरबतर होना पड़ रहा है तो कहीं अपनों के व्यंग्यबाण अंदर की बातें सतह पर ला दे रहे हैं। अहम यह कि जो कल तक एक-दूसरे को कोसते नहीं थक रहे थे, वही एक-दूसरे की तारीफ में कसीदे पढ़ रहे हैं। कोरोना काल में मध्यप्रदेश में सियासी पारा हाई है। नतीजतन चाहे भाजपा हो या कांग्रेस दोनों एक-दूसरे पर कटाक्ष करने में पीछे नहीं हैं।
हर वक्त रंग बदलती मध्यप्रदेश की सियासत में सभी की निगाह मंत्रिमंडल के विस्तार (Cabinet expansion) पर लगी हुई हैं। बीजेपी (bjp) के रणनीतिकारों के लिए मंत्री के रूप में चेहरों का चयन आसान नहीं रह गया है, कई बार कागजी कसरत करने और घंटों मंथन के बाद भी नाम तय नहीं हो पा रहे हैं की किस मंत्री को क्या जगह दी जाए। एक और सिंधिया (jyotiraditya scindia) है जो आपने खास सिपाहियों को बड़ी ज़िम्मेदारी दिलाने की बात कह रहे है और दूसरी ओर भाजपा के पुराने भरोसेमंद चेहरों के बीच एक नए तरह का द्वंद्व चल रहा है। वही केंद्रीय नेतृत्व चाहता है कि सिंधिया को किसी कीमत पर नाराज नहीं किया जाए तो स्थानीय नेतृत्व उन चेहरों पर भरोसा करना चाहता है जो विपक्ष में रहते हुए सरकार को घेरने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते थे। इसके अलावा अहम यह भी कि सिंधिया कोटे से अधिक संख्या में मंत्री बने तो भाजपा के पुराने चेहरे नाराज हो जाएंगे।
मध्यप्रदेश में नियमों के तहत अधिकतम 34 मंत्री हो सकते हैं। वर्तमान में पांच मंत्री कार्यरत हैं, ऐसे में स्थानीय नेतृत्व चाहता है कि नए विस्तार में 23 से 24 लोगों को शपथ दिला दी जाए। इसके बाद उपचुनाव में उतरा जाए। इसके दो फायदे होंगे अगर कोई नाराज होता है तो उसे समय रहते मंत्री पद से नवाजा जा सके, लेकिन दिक्कत यहां इस बात की है कि जब सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी थी तो उनके समर्थन में 22 विधायकों ने इस्तीफा दे दिया था, इसमें से छह कांग्रेस सरकार में मंत्री भी थे, इस गणित के हिसाब से पुराने मंत्रियों को स्थान देना और साथ ही अन्य की डिमांड पूरी करने के चक्कर में सारा सियासी गणित प्रभावित हो सकता है।बहरहाल उप चुनाव से पहले भाजपा किसी भी डैमेज से बचना चाहती है..उसका प्रयास है कि सभी को साथ लेकर चला जाए।