भोपाल| कोरोना पाॅजिटिव आने के बाद भी कुछ अधिकारियों द्वारा अस्पताल में भर्ती न होने के मामले में मानवाधिकार आयाेग को भेजे गए सरकार के जवाब पर सवाल खड़े हो रहे हैं| राज्य सभा सांसद विवेक तन्खा की और से उनके वकील रवि कान्त पाटीदार ने सरकार के जवाब पर आपत्ति जताते हुए मप्र मानवाधिकार के रजिस्ट्रार जेपी राव को पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की है| आपत्ति में कई महत्वपूर्ण बिंदु उठाये गए है।
पत्र में उन्होंने लिखा है कि आयाेग ने 7 अप्रैल काे प्रकाशित समाचार और एडवाेकेट विवेक तन्खा के ट्वीटर पर संज्ञान लिया था और मुख्य सचिव से जवाब तलब किया था| आयोग ने मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैस से चार बिंदुओं पर जवाब माँगा था| आयोग ने सीएस से पूछा कि कोरोना वायरस से संक्रमित स्वास्थ्य विभाग के अफसरों की पॉजिटिव रिपोर्ट कब प्राप्त हुई थी। पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद अफसरों को तुरंत अस्पताल ले जाकर आईसोलेशन वार्ड में क्यों नहीं रखा गया। इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग के कितने पाजिटिव अफसर हैं जो अन्य अधिकारी व कर्मचारियों के संपर्क आए थे। कोरोना पॉजिटिव अफसरों को क्या आईसोलेशन में रखा गया है या नहीं।
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा आयोग द्वारा पूछा गए सवालों का जवाब तय समय सीमा में सिर्फ भोपाल कलेक्टर के कार्यालय द्वारा दिया गया है। जबकि प्रदेश के मुख्य सचिव द्वारा अभी तक इस संबंध में आयोग को कोई जानकारी सौंपी नहीं गई है। जबाव में सिर्फ अफसर के नाम दिए गए हैं जो कोरोना से पीड़ित हैं। अखबार में इसक जानकारी दी गई थी। लेकिन प्रशासन की ओर से सौंपी गई रिपोर्ट में समय नहीं दिया गया है। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के पीएस द्वारा वीडियो में कोरोना बुलेटिन में राज्य सरकार द्वारा एक दिन में दो बार टेस्ट सेंपल की रिपोर्ट पाने का जिक्र किया गया है। एक सुबह और दूसरी रिपोर्ट शाम को। लेकिन आयोग द्वारा पूछी गई जानकारी में राज्य सरकार ने रिपोर्ट का समय नहीं बताया। 10 अप्रेल को दिए गए जवाब में संबंधित अफसर को अस्पताल में भर्ती किए जाने की तारीख का जिक्र नहीं किया गया है। राज्य़ सरकार ने अपने जवाब में आयोग द्वारा पूछी गई जानकारी को स्पष्ट तौर पर नहीं बताया है।
उन्होंने कहा आयोग ने पूछा था कि अफसर और कर्मचारियों को अस्पताल में भर्ती किए जाने में देरी क्यों हुई? इसका जवाब भी राज्य सरकार ने नहीं दिया है। इस देरी के कारण ही कोरोना वायरस अन्य लोगों में भी फैला। आयोग द्वारा पूछे गए तीसरे सवाल का भी जवाब सरकार ने नहीं दिया है जिसमें ये बताया जाना था कि अफसर को किस तारीख और समय पर अस्पताल में भर्ती किया गया। उन्होंने लिखा राज्य सरकार ने यह जानकारी भी छुपाई कि संबंधित कोरोना पीड़ित अफसर और कर्मचारियों को अस्पताल में किस डॉक्टर ने दाखिल किया था। संबंधित अस्पताल के डॉक्टर का नाम भी नहीं बताया गया। न ही संबंधित स्वास्थ्य अधिकारी के खिलाफ देरी से एडमिट किए जाने को लेकर कोई कार्रवाई नहीं किए जाने का भी उल्लेख रिपोर्ट में नहीं किया गया है।
राज्य सरकार ने आयोग को सौंपी गई रिपोर्ट में तथ्य को छिपाया है जिससे साफ जाहिर होता है कि वह अपने अधिकारियों की लापरवाही पर पर्दा डाल रही है। और आयोग को गलत जानकारी देकर भ्रमित कर रही है। इसके अलावा उन्होंने कहा है कि आईएएस पल्लवी गोविल के बेटे विदेश से लौटे थे, इसके बाद भी उन्हें COVID-19 की गाइडलाइन के तहत 14 दिनों तक क्वारंटाइन नहीं किया गया| खबर के मुताबिक चिरायु हॉस्पिटल को COVID-19 का सेंटर बनाया गया है| लेकिन पल्लवी जैन, जे विजय कुमार को बंसल हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया| आपत्तिकर्ता ने आयोग से लापरवाही करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है|