भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। हमेशा विवादों में रहने वाले मध्यप्रदेश के व्यापमं की वनरक्षक परीक्षा- 2012 में फर्जी तरीके से एग्जाम देने वाले 3 लोगों को सजा सुनाई गई है। गौरतलब है कि इस मामलें में STF की जांच के दौरान सुप्रीम ने जांच सीबीआई को सौंपने के आदेश दिए थे, सीबीआई की विशेष अदालत ने ये फैसला सुनाते हुए आरोपियों को सात सात साल की सजा सुनाई है, कोर्ट ने इस केस में देवेंद्र कुमार जाटव पुत्र भूषण लाल, पदम सिंह खरे पुत्र मुरारी लाल और आनंद सागर पुत्र अर्जुन प्रसाद को सजा सुनाई।
यह भी पढे…. दर्दनाक हादसा : उज्जैन में स्कूली बच्चों से भरी मैजिक पलटी,18 बच्चे घायल, 1 की मौत
दरअसल इस मामलें में 15 अप्रैल 2012 को मध्य प्रदेश वन रक्षक भर्ती परीक्षा में फर्जीवाड़े की शिकायत STF से की गई थी। शिकायत सामने आई थे कि देवेंद्र जाटव ने फर्जी तरीके से परीक्षा पास की है। STF ने व्यापमं और वन विभाग से देवेंद्र कुमार जाटव की जानकारी ली। संदेही देवेंद्र से राइटिंग का नमूना और अंगूठे के निशान लिए गए। इसी तरह, परीक्षा में पास होने वाले अभ्यर्थी पदम सिंह खरे के संबंध में भी जांच की गई। इसमें पाया गया कि दोनों आरोपी अवैध तरीके से फॉरेस्ट गार्ड बने हैं। इसके बाद जब एस टी एफ की जांच के दौरान मामला सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई को सौंपा गया।
यह भी पढ़ें… बेटी को छेड़ने से नाराज पिता ने अधेड़ को तीन टुकड़ों में काटकर मौत के घाट उतारा
जांच के दौरान सामने आया कि हैंडराइटिंग एक्सपर्ट व फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट की रिपोर्ट के आधार पर साफ हो गया कि इन दोनों सिलेक्ट उम्मीदवारों की जगह अन्य व्यक्तियों ने सॉल्वर बनकर परीक्षा दी, जांच में पता चला कि पदम सिंह ने अपने चाचा विक्रम सिंह खरे के साथ मिलकर मीडिएटर योगेंद्र यादव वासुदेव, चंदेल कुंवर, इंद्रासन उर्फ इंद्रेश सिंह, अनुज यादव के साथ मिलकर पदम सिंह खरे की जगह आनंद सागर से संपर्क कर परीक्षा दिलवाई। केस में CBI ने फर्जी तरीके से परीक्षा देने वाले 3 और मध्यस्थता करने वाले 7 लोगों के खिलाफ चार्जशीट प्रस्तुत की। कोर्ट में 43 लोगों की गवाही करवाई गई। इसमें तीन लोगों के खिलाफ आरोप साबित हुए, जबकि सात लोगों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया।