हमारे शास्त्र, ग्रंथ माता-पिता को ईश्वर का दर्जा देते हैं, पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेने, उनका सम्मान करने की शिक्षा देते हैं लेकिन आज के इस भौतिकवादी, मॉडर्न युग में बहुत से लोग इन बातों का उपहास करते हैं लेकिन कुछ लोग अभी भी हैं जो इस कलियुग में सतयुग की तरह शास्त्रों, हमारे धर्म ग्रंथों में कही गई बातों को जीवन का आधार मानते हैं और उसपर चलते हैं ..आज हम आपको एक ऐसी ही तस्वीर दिखाने जा रहे हैं
पिछले नौ दिनों से पूरा देश माता की भक्ति में डूबा हुआ है, लोग अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए उपवास कर रहे हैं, माँ की आराधना कर रहे हैं, जोश से भरे युवा गरबा डांडिया खेल रहे हैं और इस सब के बीच एक बेटे ने अपनी माँ के प्रति श्रद्धा और प्यास का एक ऐसा अनूठा उदाहरण प्रस्तुत किया है जो चर्चा का विषय बना हुआ है।

माँ के लिए बेटे का संकल्प
छतरपुर शिक्षा विभाग में लिपिक के पद पर कार्यरत विपिन दीक्षित भी माँ के अन्य भक्तों की तरह नवरात्रि में नौ दिन का व्रत रखते हैं, लेकिन उसे खोलने यानि उसका पारण करने के लिए उन्होंने जो संकल्प लिया वो उन्हें दूसरों से अलग बनाता है जिसकी चर्चा आज सोशल मीडिया पर हो रही है।
व्रत के पारण के लिए अनूठा संकल्प
विपिन दीक्षित की माँ नौगाँव में रहती हैं, उन्होंने संकल्प लिया कि मैं अपना नौ दिन का उपवास माँ के पैर धोकर खोलूँगा और इसके लिए छतरपुर से नौगाँव तक पैदल यात्रा करूँगा, आज उन्होंने अपने इस संकल्प को पूरा किया, विपिन दीक्षित सुबह 5:35 बजे अपनी यात्रा पर निकले और 9:30 बजे अपनी माँ के पास पहुँचे।
4 घंटे पदयात्रा, माँ के पैर धोकर खोला व्रत
छतरपुर स्थित घर से नौगांव में रह रही अपनी माँ के घर तक लगभग 4 घंटे की पदयात्रा कर विपिन दीक्षित घर पहुंचे, माँ के पास पहुँचकर उन्होंने पैर धोकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया और अपना नौ दिवसीय व्रत का पारण किया, दरअसल विपिन दीक्षित के पिता का देहांत 2002 में ही हो गया था, जिसके बाद उनकी माँ ने ही उन्हें पाल-पोसकर काबिल बनाया। विपिन दीक्षित अपनी माँ को ही ‘अम्बे जगदम्बे’ का रूप मानते हैं।
विपिन दीक्षित की यात्रा प्रेरणा
युवाओं के लिए यह पदयात्रा एक प्रेरणास्रोत है। विपिन दीक्षित का स्पष्ट संदेश है कि माता-पिता ही ईश्वर हैं। उनका कहना है, “आप भले ही मंदिर के भगवान को नजरअंदाज कर दें, लेकिन माता-पिता की सेवा मात्र से ही आपको सभी तीर्थों का पुण्य लाभ मिल जाएगा।”
माँ का ऋण चुकाना असंभव
उन्होंने भगवान गणेश और प्रभु श्रीराम का उदाहरण देते हुए कहा कि माता-पिता भगवान के रूप में हमें मिले हैं, जिनके आशीर्वाद में ही हर व्यक्ति की उन्नति छिपी है। उन्होंने कहा कि वह अपनी माँ के सुख, शांति और दीर्घायु के लिए यह व्रत और पदयात्रा करते हैं, क्योंकि माँ का ऋण चुकाना असंभव है।
छतरपुर से सौरभ शुक्ला की रिपोर्ट










