जस्टिस सुरेश कुमार कैत का जीवन एक मिसाल है। उन्होंने अपने विदाई समारोह में बताया कि उनके पिता एक साधारण मजदूर थे और खुद उन्होंने मजदूरी कर मैट्रिक की पढ़ाई पूरी की। स्कूल में कमरे नहीं थे, पेड़ों के नीचे कक्षाएं लगती थीं। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वे जज बनेंगे, लेकिन अपने हौसले और मेहनत से वो मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंचे। ये कहानी बताती है कि अगर इरादा मजबूत हो तो कोई भी सपना पूरा हो सकता है।
अपने विदाई भाषण में जस्टिस कैत ने बेहद जरूरी मुद्दे पर ध्यान दिलाया। उन्होंने कहा कि MP हाईकोर्ट में 53 जजों की जरूरत है, लेकिन फिलहाल सिर्फ 33 जज ही कार्यरत हैं। इस वजह से हर जज पर भारी काम का दबाव है। खुद जस्टिस कैत ने बताया कि 27 सितंबर से अब तक उन्होंने 3810 मामलों की सुनवाई की है, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है।

सिविल जज भर्ती प्रक्रिया में भी अहम बदलाव किया
उन्होंने यह भी कहा कि न्यायिक प्रक्रिया को तेज और प्रभावी बनाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को जजों की नियुक्ति पर गंभीरता से काम करना चाहिए। क्योंकि जजों की कमी सीधे तौर पर जनता को मिलने वाले न्याय पर असर डालती है।जस्टिस कैत ने अपने कार्यकाल में सिविल जज भर्ती प्रक्रिया में भी अहम बदलाव किया। उन्होंने 70% अंकों की अनिवार्यता को खत्म कर दिया, जो गरीब और सरकारी विश्वविद्यालयों से पढ़े छात्रों के लिए बाधा बन रही थी। उनके मुताबिक, यह फैसला समान अवसर देने और प्रतिभा को पहचान देने की दिशा में एक बड़ा कदम था।
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के जूनियर के तौर पर भी काम किया
जस्टिस कैत ने यह भी बताया कि उन्होंने दिल्ली की सेंट्रल यूनिवर्सिटी से LLB किया और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के जूनियर के तौर पर भी काम किया। यही नहीं, जब 2008 में उन्हें पहली बार हाईकोर्ट का जज नियुक्त किया गया, उसी दिन भारत के पूर्व राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के बेटे ने भी जज की शपथ ली। इसे उन्होंने संविधान की समता की भावना का सटीक उदाहरण बताया। जस्टिस सुरेश कुमार कैत की विदाई भावुक रही, लेकिन उन्होंने जो उदाहरण पेश किया, वह आने वाली पीढ़ियों को न्याय, समानता और शिक्षा की असली ताकत समझाने में मदद करेगा।
संदीप कुमार, जबलपुर