ग्वालियर/अतुल सक्सेना
ग्वालियर चंबल अंचल इन दिनों भले ही श्रीमंत सिंधिया (shrimant scindia) जिंदाबाद के नारों से नहीं गूंज रहा हो लेकिन कांग्रेस “महाराज” की छाया से बाहर नहीं निकल पाई है। भितरघातियों के डर से कांग्रेस (congress) ने अपने कार्यकर्ताओं को पार्टी में निष्ठा साबित करने के लिए तीन दिन का समय दिया था । पार्टी ने एक सूची तैयार की थी जिसमें सिंधिया समर्थक और गैर सिंधिया समर्थकों के नाम थे। लेकिन पार्टी कोई फैसला लेती उससे पहले ही सूची “महाराज” के पास पहुँच गई। अब कांग्रेस पार्टी के “विभीषण” की तलाश कर रही है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया (jyotiraditya scindia) के कांग्रेस छोड़ने के बाद ग्वालियर चंबल में कांग्रेस नेताओं में खलबली मची हुई है। सिंधिया में पूरी निष्ठा रखने वाले नेताओं ने तो बिना समय गंवाये कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया। कुछ ने मौके की नजाकत को भांपते हुए इस्तीफा देकर वापस ले लिया तो कुछ ने अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं की। यानि बहुत से नेताओं ने दोनों हाथ में लड्डू रखे हुए हैं। चूंकि उपचुनाव नजदीक हैं और स्थिति स्पष्ट नहीं करने वाले कांग्रेसी परेशानी खड़ी ना कर दें इसलिए 12 मई को प्रदेश कांग्रेस कमेटी के कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत (ramnivas rawat) ने कांग्रेस कार्यालय में आयोजित बैठक में दो टूक शब्दों में कहा कि अपनी स्थिति स्पष्ट नहीं करने वाले कार्यकर्ता तीन दिन में बताएं कि उनकी आस्था पार्टी में है कि नहीं। बैठक में जिला अध्यक्ष डॉ देवेंद्र शर्मा, प्रदेश पदाधिकारी सुनील शर्मा आदि मौजूद थे। सूत्र बताते हैं कि इस दिन एक सूची बनी जिसमें सिंधिया समर्थक और गैर सिंधिया समर्थकों के नाम थे। इस सूची में उनके भी नाम थे जिन्होंने स्थिति स्पष्ट नहीं की है। लेकिन कार्यकर्ता अपनी स्थिति स्पष्ट कर पाते या इस सूची के हिसाब से कांग्रेस कोई एक्शन लेती उससे पहले ही ये सूची “महाराज” यानि सिंधिया के पास मेल के माध्यम से पहुँच गई। अब कांग्रेस में ये खलबली है कि आखिर पार्टी में “विभीषण” कौन है? उसकी तलाश की जाए।
रणनीति के तहत अभी नहीं छोड़ी है कांग्रेस
कांग्रेस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस में अभी भी बहुत से नेता और कार्यकर्ता ऐसे हैं जिनकी निष्ठा सिंधिया के प्रति आज भी है। आज भी उनके मुँह से “महाराज” शब्द ही निकलता है। लेकिन इन्होंने किसी विशेष रणनीति के तहत कांग्रेस नहीं छोड़ी। दावा तो यहाँ तक किया जा रहा है कि इनमें से अधिकांश सिंधिया के संपर्क में हैं। और ऐसे नेताओं और कार्यकर्ताओं से कहा गया है कि चुनावों के समय पार्टी छोड़ देना। हालांकि इस बात के कोई पुख्ता प्रमाण किसी के पास नहीं हैं।
ऐसे हुआ मामले का खुलासा
दरअसल 12 मई को दी गई तीन दिन की अवधि पूरी हो गई हालांकि इस अवधि में बहुत से नेताओं ने पत्र लिखकर जिला अध्यक्ष को अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी लेकिन स्थिति स्पष्ट नहीं करने वालों की संख्या ज्यादा है। मामला तब चर्चा में आया जब ऐसे कार्यकर्ताओं के पास फोन आने शुरू हो गए। दरअसल उप चुनाव सिंधिया के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न है। उनके भरोसे पर नेता मंत्री पद और विधायकी छोड़ कर आये हैं इसलिए सिंधिया स्वयं छोटे से छोटे कार्यकर्ता से फोन पर बात कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक सूची में शामिल कई कार्यकर्ताओं के पास सिंधिया (scindia) के यहाँ से फोन आने शुरू हो गए कि “महाराज” (maharaj) ने हमेशा आपके लिए किया है आप वहाँ कैसे रह गए। अब यदि वहाँ तो अभी रहो लेकिन “महाराज” के साथ रहो, चुनाव के समय आ जाना। पार्टी कार्यालय में गिने चुने लोगों के बीच बनी सूची सिंधिया तक पहुँचने के बाद पार्टी में खलबली मची है और जिनके सामने सूची बनी वो सब एक दूसरे को शक की निगाह से देख रहे हैं, तलाश की जा रही है कि आखिर “विभीषण” कौन हैं। उधर मामला प्रदेश अध्यक्ष के पास तक पहुँच गया हैं और उन्होंने कुछ निष्ठावान वरिष्ठ कांग्रेसियो से इसका पता लगाने के लिये कहा है। उधर पार्टी के जिला अध्यक्ष ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। एमपी ब्रेकिंग न्यूज़ से बात करते हुए जिला अध्यक्ष डॉ देवेंद्र शर्मा ने कहा कि ये विरोधियों की चाल है। लेकिन सच्चा कांग्रेसी इसमें फंसने वाला नहीं है । उन्होंने तो यहाँ तक कहा कि कोई सूची ही नहीं बनी तो लीक कहाँ से होगी। बहरहाल सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के बाद से उनके गढ़ में कांग्रेस परेशानी में हैं उसे कभी सिंधिया के खास रहे नेताओं में से किसी को टिकट देना है, भरोसा करना है और भितरघात से पार्टी को बचाकर सीट भी जीतना है। देखना होगा कि परिणाम किसके पक्ष में जाते हैं।