Freedom Fighter: आपने अब तक कई स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में पढ़ा और सुना होगा लेकिन ज्यादातर ने अपने जीवन के 100 बसंत नहीं देखे होंगे उससे पहले ही किसी ना किसी वजह से वे पंचतत्व में विलीन हो गए होंगे। लेकिन हम आज आप को ग्वालियर के एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपने जीवनकाल में 106 से ज्यादा बसंत देखे।
जब हिंदुस्तान अपनी आजादी के लिए अंग्रेजी हुकुमत से लड़ रहा था उसी दौर में झांसी स्टेट के एक छोटे से गांव बंका पहाड़ी के कोरी कुल में 13 अगस्त 1916 को एक बालक का जन्म हुआ नाम था नाथूराम सूत्रकार। इनके पिता का नाम वसंत सूत्र का और मां का नाम कुमार भाई था दो भाइयों में नाथूराम सबसे बड़े थे।
नाथूराम सूत्र कार के पिताजी बालक नाथूराम को अक्सर रानी लक्ष्मीबाई वीरांगना झलकारी बाई शहीद पूरन कोरी और बुंदेलखंड के वीर योद्धाओं की कहानी सुनाते थे। नाथूराम सूत्रकार के पिताजी के मन पर आजादी के लिए चलाए जा रहे आंदोलनों का बहुत गहरा प्रभाव उन्होंने स्वयं कई आंदोलनों में भाग लिया और जेल भी गए नाथूराम सूत्र के कोमल मन पर इन कहानियों का इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि उन्होंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद पढ़ाई छोड़ दी और आजादी की लड़ाई में भाग लेने के लिए चल पड़े।
बाद में वे कबीर पंथ में प्रभाव में आए जहां से उन्हे दीवान की उपाधि मिली और यहीं से लोग उन्हे नाथूराम सूत्रकार दीवान जी के नाम से बुलाने लगे। सन 1936 में वे अपने साथियों पंचम लाल जैन, प्रेम नारायण खरे, नारायण दास खरे, चतुर्भुज पाठक, लालाराम वाजपेयी बाबूराम चतुर्वेदी को साथ लेकर बुंदेलखंड की रियासतों में आजादी के लिए काम करने लगे।
सन 1938 में फतेहपुर सत्याग्रह के दौरान ब्रिटिश पुलिस ने लाठीचार्ज किया जिसमें इनके साथ ही बुरी तरह से जख्मी हो गए और नाथूराम सूत्रकार की बाएं पैर की हड्डी टूट गई साथ ही इन्हें ब्रिटिश हुकूमत ने 2 माह की सजा सुनाई।
सजा समाप्त होने के बाद नाथूराम अपने साथियों लक्ष्मी नारायण नायर, श्याम लाल साहू, सावित्री देवी, कप्तान अवधेश प्रताप सिंह रीवा जैसे नेताओं के साथ मिलकर बुंदेलखंड की रियासतों में आजादी की लड़ाई लड़ते रहे।
जिसके परिणाम स्वरूप नाथूराम सूत्रकार को सन 1945 में 3 महीने मैहर की बंशीपुर जेल में 1946 में 3 महीने 5 दिन चरखारी स्टेट जेल में सजा के तौर पर बिताने पड़े इतना ही नहीं इसके बाद में उन्हे 1 साल के लिए बुंदेलखंड रियासत से जिला बदर कर दिया गया
इस समय वे ग्वालियर कानपुर और इंदौर में रहे यहीं उनकी मुलाकात गोपाल कृष्ण विजयवर्गीय से हुई। कुछ समय बाद नाथूराम सूत्रकार अपने गांव बंका पहाड़ी लौटे तब तक उनकी जमीन दरियाव सिंह नाम के एक व्यक्ति ने हड़प ली और इनके पिता को इतना पीटा की उनकी मौत हो गई।
इसके बाद अपने एक मित्र भवानी के यहां भोजन करने के कारण उनका नाथूराम सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया और उनकी आजीविका के साधन बंद कर हो गए। लेकिन नाथूराम जी ने अपने संघर्ष को जारी रखा और अंग्रेजों के साथ-साथ सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद करने लगे
सन 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया जिसके बाद सन 1949 में अपनी धर्मपत्नी तुलसा देवी को साथ में लेकर तत्कालीन ग्वालियर रियासत में आकर जेसी मिल में काम करने लगे। उनके चार पुत्र थे। उन्होंने 32 साल ग्वालियर के जेसी मिल में काम किया। इस दौरान उन्होंने कई कविताएं भी लिखीं। देश की आजादी के प्रति अपने अमूल्य योग्यदान के लिए सन 1972 में तत्कालनी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन्हें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सम्मान से सम्मानित किया। 29 नवंबर 2021 को वे पंचतत्व में विलीन हो गए।