प्रतिबंध के बावजूद पराली जलाना पड़ा भारी, 60 किसानों पर 2 लाख रुपये से ज्यादा का जुर्माना

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि नरवाई जलाने से भूमि में अम्लीयता बढ़ती है, जिससे मृदा(मिटटी) को अत्यधिक क्षति पहुँचती है । सूक्ष्म जीवाणुओं की सक्रियता घटने लगती है एवं भूमि की जलधारण क्षमता पर भी विपरीत प्रभाव पड़ता है।

Gwalior News : फसल के अवशेष यानि नरवाई यानि पराली जलाने से जहाँ प्रदूषण फैलता है वहीं खेतों की उर्वरा क्षमता भी कम होती और गर्मी के इस मौसम में आग लगने का भी खतरा रहता है इसलिए इसे प्रतिबंधित किया गया है, सरकार ने स्पष्ट तौर पर कहा है कि प्रतिबंध के बावजूद यदि कोई इसका उल्लंघन करता है तो उसे सजा जरुर मिलेगी, इसी क्रम में ग्वालियर जिला प्रशासन ने 60 किसानों पर एक्शन लिया है।

ग्वालियर जिले के 60 किसानों को पराली जलाना भारी पड़ा है, प्रतिबंध के बावजूद इन किसानों ने पराली जलाई जिसकी सूचना पर ग्वालियर जिला प्रशासन द्वारा गठित जांच दलों ने जब क्षेत्र का भ्रमण किया तो सूचना को सही पाया जिसके बाद प्रशासन ने इन किसानों पर 2 लाख 14 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया है, ये सभी किसान डबरा क्षेत्र के हैं।

डबरा SDM ने की 60 किसानों पर कार्रवाई 

ग्वालियर जिले के डबरा राजस्व अनुविभाग में स्थित विभिन्न ग्रामों के किसानों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। पराली जलाने वाले इन किसानों पर अर्थदण्ड लगाने के साथ-साथ वसूली की कार्रवाई भी शुरू कर दी गई है। अर्थदण्ड की राशि भू-राजस्व वसूली की तर्ज पर वसूल की जा रही है।

इन गांवों के किसानों ने किया प्रतिबंध का उल्लंघन 

बता दें डबरा राजस्व अनुविभाग में गठित जांच दलों द्वारा किए गए ग्रामीण क्षेत्र में दौरे के दौरान पराली/नरवाई जलाने की घटनाएं सामने आई थीं। जांच के दौरान मालूम चला कि ग्राम छपरा में 14 किसानों द्वारा खेतों में फसल अवशेष जलाए गए हैं। इन किसानों पर 45 हजार रुपये का अर्थदण्ड/जुर्माना लगाया गया। इसी तरह ग्राम बिर्राट में खेतों में नरवाई जलाने वाले 18 किसानों पर एक लाख 5 हजार, ग्राम कल्याण में 13 किसानों पर 41 हजार 500 रुपये एवं ग्राम समूदन में पराली जलाने वाले 15 किसानों पर 22 हजार रुपये का अर्थदण्ड लगाया गया है।

NGT ने जारी किये हैं प्रतिबंध के आदेश 

उल्लेखनीय है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने फसल के अवशेष (पराली/नरवाई) जलाने से फैलने वाले प्रदूषण पर अंकुश, अग्नि दुर्घटनाएँ रोकने एवं जान-माल की रक्षा के उद्देश्य से इसपर प्रतिबंध के निर्देश दिए हुए हैं,  नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिशा-निर्देशों के तहत कलेक्टर एवं जिला दण्डाधिकारी रुचिका चौहान ने भी जिले में इसका सख्ती से पालन कराने के आदेश अधिकारियों को दिए हुए हैं।

इस हिसाब से भरना होता है पर्यावरण मुआवजा

आदेश में स्पष्ट किया गया था कि खेतों में फसल अवशेष जलाए तो संबंधित किसानों को पर्यावरण मुआवजा देना होगा। आदेश में पर्यावरण मुआवजा अर्थात जुर्माने की राशि भी निर्धारित की गई है इसके हिसाब से  दो एकड़ से कम भूमि धारक को 2500 रुपये प्रति घटना, दो एकड़ से अधिक व पाँच एकड़ से कम भूमि धारक को पाँच हजार रुपये प्रति घटना एवं पाँच एकड़ से अधिक भूमि धारक को 15 हजार रुपये प्रति घटना पर्यावरण मुआवजा देना होगा।

पराली जलाने से घटती है खेत की उर्वरा शक्ति

वैज्ञानिकों की मानें तो नरवाई जलाने से पर्यावरण को भारी क्षति पहुँचती है, साथ ही खेत की मिट्टी के लाभदायक सूक्ष्म जीवाणु मर जाते हैं, भूमि गर्म हो जाने से उर्वरता घट जाती है, इसलिए किसान भाईयों से अपील की गई है कि गेंहूँ की कटाई के बाद नरवाई न जलाएँ। नरवाई जलाना दण्डनीय अपराध है।

किसानों को दी जा रही है पराली प्रबंधन की ये सलाह  

उप संचालक किसान कल्याण एवं कृषि विकास आर एस शाक्यवार ने बताया कि किसानों को सलाह दी गई है कि यदि वे कम्बाईन हार्वेस्टर से कटाई के साथ ही भूसा बनाने की मशीन को प्रयोग कर यदि भूसा बनायेंगे तो पशुओं के लिए भूसा मिलेगा और फसल अवशेषों का बेहतर प्रबंधन हो सकेगा। साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहेगी और पर्यावरण भी सुरक्षित होगा।

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Atul Saxena

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पत्रकारिता मेरे लिए एक मिशन है, हालाँकि आज की पत्रकारिता ना ब्रह्माण्ड के पहले पत्रकार देवर्षि नारद वाली है और ना ही गणेश शंकर विद्यार्थी वाली, फिर भी मेरा ऐसा मानना है कि यदि खबर को सिर्फ खबर ही रहने दिया जाये तो ये ही सही अर्थों में पत्रकारिता है और मैं इसी मिशन पर पिछले तीन दशकों से ज्यादा समय से लगा हुआ हूँ....पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....

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