ग्वालियर। मीसाबंदियों द्वारा कांग्रेस सरकार द्वारा उनकी पेंशन रोके जाने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने बड़ा फैसला दिया है। हाईकोर्ट ने आज कहा कि भौतिक सत्यापन कराने में कोई त्रुटि नहीं है और यदि अपात्र मीसाबंदी पेंशन ले रहे है, तो उनसे वसूली की जाए।
गौरतलब है कि आपातकाल के दौरान राजनीतिक या सामाजिक कारणों से जेल में बंद रहे मीसाबंदियों को पिछली भाजपा सरकार लोकनायक जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि (पेंशन) दे रही थी। नियमानुसार मात्र एक दिन भी मीसा कानून के तहत जेल में बंद रहने वाले व्यक्तियों को पेंशन की पात्रता दी गई है। इन्हें आठ हजार रुपए महीना पेंशन दी जा रही थी। लोकनायक जयप्रकाश नारायण सम्मान निधि नियम 2008 के तहत कम से कम एक माह जेल में बंद रहने वालों को पेंशन की पात्रता थी। जिसे 1 दिन कर दिया गया। एक माह या इससे अधिक अवधि वाले लोगों को 25 हजार रुपए मासिक पेंशन दी जा रही है। लेकिन जैसे ही मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार सत्ता में आई उसने मीसाबंदियों की पेंशन ये कहकर रोक दी कि इसमें बहुत से अपात्र लोग पेंशन ले रहे हैं जिनके भौतिक सत्यापन की जरूरत है।
सरकार के इस फैसले को मीसाबंदियों ने हाईकोर्ट में चुनौती दी और सरकार के फैसले को राजनीति से प्रेरित बताया । याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट की ग्वालियर खंडपीठ ने मीसाबंदी सीताराम बघेल व अन्य के मामले में सुनवाई करते हुए बीती 30 अक्टूबर को आदेश दिया कि पन्द्रह याचिकाकर्ता मीसाबंदियों की रोकी गई पेंशन एक महीने में फिर से शुरू की जाए। साथ ही शासन को 30 दिन में यह बताना होगा कि पेंशन क्यों रोकी गई थी? मीसाबंदियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा ने मीसा बंदियों को यह अंतरिम राहत देते हुए इस मामले को भी मीसाबंदियों की पेंशन से संबंधित अन्य मामलों के साथ सुनवाई के लिए रखे जाने के निर्देश भी दिए । लेकिन याचिका की सुनवाई करते हुए आज हाईकोर्ट ने माना की सरकार द्वारा भौतिक। सत्यापन कराये जाने के आदेश में कोई त्रुटि नहीं है। जो पात्र मीसाबंदी है उसे पेंशन दी जाये और यदि कोई अपात्र मीसाबंदी पेंशन ले रहा है तो उससे वसूली की जाये।