ग्वालियर, अतुल सक्सेना। राखी (Rakhi) शब्द सामने आते ही भाई बहन का पवित्र रिश्ता और प्यार नजरों के सामने आ जाता है। रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) पर बहन जब बाजार में राखी लेने जाती है तो सिर्फ उसे खरीदती नहीं हैं बल्कि चुनती है, वो राखी को चुनते समय भाई के लिए अपना पूरा प्यार उड़ेल देती है। लेकिन कुछ बहनें ऐसी होती हैं जो हालात के कारण अपने भाई को राखी नहीं बांध पाती, ऐसी बहनों ने दूसरी बहनों के भाइयों की कलाई पर राखी सजाने का ठाना है और उसी में अपने भाई के प्रति भावनाएं पिरोई हैं।
ये कहानी हालात में उलझी उन बहनों की है जो जेल की चार दीवारी में कैद है। अपने अपराध की सजा काट रही महिला बंदी ग्वालियर सेन्ट्रल जेल (Central Jail Gwalior) में इन दिनों राखी बनाने का काम कर रही हैं। ग्वालियर सेन्ट्रल जेल में 6 साल से बंद शैला नामक महिला बंदी ने कहा कि महिलाओं के लिए वैसे तो सभी त्यौहार खास होते है लेकिन राखी बहुत विशेष होता है।
उन्होंने कहा कि राखी बनाने में हमें बहुत गौरव का अनुभव हो रहा है, हम भले ही अपने भाई को राखी नहीं बांध पाएं लेकिन जो भी बहन इस राखी को अपने भाई को बांधेगी, हम समझेंगे कि हमने ही बांधी है। उन्होंने बताया कि कुछ महिला बंदी पहले से राखी बनाना जानती थी और कुछ महिलाओं का खुद का क्रिएशन हैं।
ग्वालियर सेन्ट्रल जेल के जेलर प्रभात कुमार शर्मा ने बताया कि केंद्रीय जेल ग्वालियर के महिला वार्ड में 100 दंडित बंदी और 60 विचाराधीन बंदी हैं। इनके साथ लगातार अच्छे काम किये जाते हैं, छोटे छोटे उद्योग स्थापित किये जा रहे हैं , इनके स्वावलम्बन के लिए कई कार्यक्रम किये जाते हैं।
उन्होंने कहा कि रक्षाबंधन को देखते हुए महिला बंदियों ने राखी बनाने की इच्छा जाहिर की तो हमने इसे शुरू कराया है, करीब 40 महिला बंदी इस समय राखी बना (Women prisoners made rakhis) रही है। उन्होंने कहा कि महिला बंदी टेडीबियर, सेनेटरी नैपकिन भी बनाने के काम कर चुकी हैं। जेलर प्रभात कुमार ने कहा कि राखियों का रेट 2 रुपये से 10 रुपये तय किया गया है और इसे एनजीओ के माध्यम से बाजार में बेचा जायेगा।
बहरहाल राखी भावनाओं का त्यौहार है, भाई बहन के निश्छल प्यार का त्यौहार हैं, आज नियमों के चलते जेल में बहनों से मिलने उनके भाई नहीं पहुँच पा रहे लेकिन राखी के धागों में पिरोकर जेल में बंद बहनें भाइयों के लिए प्यार भेज रही हैं। ये राखी भले ही बाजार में बिकने वाली राखी की तरह सुन्दर ना हो, फैशनेबल ना हो लेकिन इसमें छिपे एक बहन के प्यार ने इसे अनमोल बना दिया है।
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Atul Saxena
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पत्रकारिता के इस भौतिकवादी युग में मेरे जीवन में कई उतार चढ़ाव आये, बहुत सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा लेकिन इसके बाद भी ना मैं डरा और ना ही अपने रास्ते से हटा ....पत्रकारिता मेरे जीवन का वो हिस्सा है जिसमें सच्ची और सही ख़बरें मेरी पहचान हैं ....