ग्वालियर, अतुल सक्सेना
बीजेपी (BJP) से राज्यसभा सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) के एक खुलासे ने रविवार को मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। ग्वालियर (Gwalior) के फिजिकल कॉलेज सभागार में आयोजित बीजेपी सदस्यता अभियान कार्यक्रम में सिंधिया ने कहा कि वे राजनीति जनसेवा के लिए करते हैं और विधानसभा चुनाव के बाद जब कांग्रेस की सरकार बनी और उन्हें उप मुख्यमंत्री पद का ऑफर दिया गया तो उसे उन्होंने इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि उन्हें पता चल चुका था कि कमलनाथ सरकार किस तरह की करतूतें करेगी।
सिंधिया ने आगे कहा कि वे इस सरकार की लूट में शामिल होना नहीं चाहते थे यानी साफ तौर पर सिंधिया ने इशारा कर दिया कि जब कांग्रेस के केंद्रीय आलाकमान ने उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार नहीं बनाया तभी से वे कांग्रेस से खफा थे । हालांकि उसके बाद मंत्रिमंडल में उनके छह मंत्रियों को न केवल शपथ दिलाई गई बल्कि वजनदार विभाग भी मिले। इतना ही नहीं सिंधिया ने मई में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में चुनाव भी लड़ा था| हालाकि वे पराजित हो गए । लेकिन सिंधिया के बयान से यह साफ हो रहा है कि सिंधिया का 2018 में मुख्यमंत्री न बनने के बाद ही भारतीय जनता पार्टी में जाने का मन धीरे-धीरे बनने लगा था और वे उचित अवसर की तलाश में थे।
सिंधिया को यह भी लगता था कि मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ने जिस तरह से सत्ता पर कब्जा किया है उसे देखते हुए उनका अब मध्यप्रदेश में कांग्रेस में भविष्य सुरक्षित नहीं रहा । लेकिन इन सबके बीच एक बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर जब सिंधिया को पता था कि कमलनाथ के नेतृत्व में मध्य प्रदेश की सरकार इस तरह से भ्रष्टाचार और लूट का माहौल बनाएगी तो क्यों उन्होंने मध्यप्रदेश में 15 महीने तक अराजकता का राज रहने दिया| क्योंकि अगर सिंधिया की माने तो जिस तरह से मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार काम कर रही थी उस तरह से तो प्रदेश लगातार बर्बादी के कगार पर ही जा रहा था। ऐसे में सिंधिया को तत्काल ही कोई निर्णय लेना था ताकि प्रदेश का भविष्य सुरक्षित रहता और प्रदेश और ज्यादा गर्त में नहीं जाता ।लेकिन राजनेता उचित अवसर की तलाश करते हैं और सिंधिया ने भी यही किया। जब उन्हें लगा कि अब सही वक्त बीजेपी में जाने का है तब उन्होंने कांग्रेस को अलविदा कह दिया।