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Sun, Dec 21, 2025

बैकुंठ चतुर्दशी की मध्य रात्रि में हरी का हर से हुआ अद्भुत मिलन, महाकाल ने भगवान विष्णु को सौंपा सृष्टि का भार

Written by:Rishabh Namdev
Published:
भगवान महाकाल ने बैकुंठ चतुर्दशी की मध्य रात्रि में भगवान विष्णु को जगत का भार सौंप दिया। दरअसल देव शयनी ग्यारस से अब तक चार महीने भगवान महाकाल ने सृष्टि का दायित्व संभाला। अब भगवान विष्णु यह दायित्व संभालेंगे।
बैकुंठ चतुर्दशी की मध्य रात्रि में हरी का हर से हुआ अद्भुत मिलन, महाकाल ने भगवान विष्णु को सौंपा सृष्टि का भार

बैकुंठ चतुर्दशी की मध्य रात्रि में हरि-हर मिलन पूर्ण हुआ। इस मिलन में भगवान महाकाल ने सृष्टि का भार फिर से भगवान विष्णु को सौंप दिया। गुरुवार को आधी रात को उज्जैन में आतिशबाजियों के साथ यह मिलन हुआ। भगवान महाकाल की सवारी रात करीब 11 बजे निकली। सवारी तय स्थान गोपाल मंदिर के लिए निकली। इस दौरान भक्तों ने महाकाल के नारे लगाए और धूमधाम से इस मिलन को मनाया। हरी हर मिलन में भक्तो की भारी भीड़ देखने को मिली।

मध्यरात्रि भगवान महाकाल अपनी सवारी के साथ जगत के पालन कर्ता भगवान विष्णु के समक्ष पहुंचे। महाकाल मंदिर से सवारी गोपाल मंदिर पहुंची। इस अद्भुत मिलन के साक्षी बनने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु सवारी‎ मार्ग के दोनों ओर इकट्ठे हुए।

मध्य रात्रि को हरी का हर से अद्भुत मिलन

मान्यताओं के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी की मध्य रात्रि को हरी का हर से मिलन होता है। हरि यानी भगवान विष्णु और हर यानी भगवान शिव। इस अद्भुत मिलन के दौरान दोनों देवों ‎को अपने-अपने स्वभाव के ‎विपरीत मालाएं धारण करवाई गईं। इस मिलन में भगवान महाकाल ने प्रभु‎ द्वारकाधीश को बिल्वपत्र की माला धारण करवाई। वहीं ‎प्रभु द्वारकाधीश ने भगवान ‎महाकाल को तुलसी पत्र की माला‎ धारण करवाई। इस मिलन के दौरान भक्तों ने देवों की महाआरती की। वहीं विधि विधान के साथ पूजन-अर्चन किया गया।

जानिए क्या है मान्यता?

वहीं इस अद्भुत मिलन के बाद भगवान महाकाल अपनी सवारी के साथ देर ‎रात वापस अपने धाम महाकालेश्वर‎ ज्योतिर्लिंग पहुंचे। दरअसल धार्मिक मान्यताओं की मानें तो, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देव प्रबोधिनी ‎एकादशी तक पाताल‎लोक में राजा बलि के यहां विश्राम‎ करने जाते हैं। वहीं इस दौरान भगवान विष्णु सृष्टि ‎का पूरा भार महाकाल को सौंप देते है।‎ वहीं बैकुंठ चतुर्दशी की मध्य रात्रि में भगवान महाकाल फिर से सृष्टि का भार‎ भगवान विष्णु को सौंपते हैं। वहीं इसके बाद अब भगवान ‎महाकाल एक बार फिर कैलाश पर्वत पर तपस्या के ‎लिए लौट जाते हैं।