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Fri, Dec 19, 2025

Harsiddhi Mandir: बहुत प्रसिद्ध है मध्य प्रदेश का ये देवी मंदिर, नगर के राजा ने 11 बार मां को चढ़ाया था अपना शीश

Written by:Diksha Bhanupriy
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Harsiddhi Mandir: बहुत प्रसिद्ध है मध्य प्रदेश का ये देवी मंदिर, नगर के राजा ने 11 बार मां को चढ़ाया था अपना शीश

Harsiddhi Mandir MP: भारत एक ऐसा देश है जहां देवी देवताओं को बहुत ही आस्था के साथ पूजा जाता है। अलग-अलग धर्म परंपराओं और मान्यताओं को मानने वाला देश कहां है इंसान अपने तरीके से अपने आराध्य को पूजता है। देशभर में दुर्गा के कई मंदिर मौजूद है जहां अलग-अलग रूप में माता निवास करती हैं।

नवरात्रि का पर्व चल रहा है और देश भर के दुर्गा मंदिरों में आस्था का सैलाब उमड़ता हुआ नजर आ रहा है। भक्त अपनी श्रद्धा और भक्ति के अनुसार माता की आराधना में लीन नजर आ रहे हैं। हमारे देश में कुल 52 शक्तिपीठ है जिनमें से एक हिंदुस्तान के दिल मध्य प्रदेश के धार्मिक शहर उज्जैन में मौजूद है। आज हम आपको इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा और रोचक तथ्यों की जानकारी देते हैं।

उज्जैन में है Harsiddhi Mandir

उज्जैन में राजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी मां हरसिद्धि का मंदिर मौजूद है जिसकी गिनती 52 शक्तिपीठों में की जाती है। उज्जैन की रक्षा के लिए इसके आसपास देवियों का पहरा है और जिस जगह पर माता हरसिद्धि का मंदिर है वहां पर माता सती की कोहनी गिरी थी। वेदों और पुराणों में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है।

Harsiddhi Mandir

ऐसा है हरसिद्धि मंदिर

हरसिद्धि मंदिर में कुल 4 प्रवेश द्वार बने हुए हैं और मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर है। द्वार पर खूबसूरत डिजाइन और नक्काशी देखने को मिलती है। दक्षिण पूर्व दिशा में एक खूबसूरत बावड़ी बनी हुई है। इसके अंदर एक स्तंभ है और श्रीयंत्र बना हुआ दिखाई देता है और इसके पीछे मां अन्नपूर्णा की मूर्ति स्थापित है।

मंदिर के सामने खूबसूरत सप्त सागरों में से एक रुद्रसागर बना हुआ है जो इसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा देता है। मंदिर में स्थापित माता की प्रतिमा के ठीक सामने दो दीपस्तंभ बने हुए हैं जिन्हें नवरात्रि के मौके पर जगमग रोशनी से सजाया जाता है और ये आने वाले भक्तों का मन मोह लेते हैं। फिल्म यह है कि नवरात्रि में इन दीपस्तंभ को प्रज्वलित करवाने के लिए भक्तों को साल 2 साल पहले ही बुकिंग करवानी पड़ती है।

इन दोनों स्तंभों पर कुल 1100 दीपक जलते हैं जिन्हें जलाने के लिए एक बार में 60 किलो तेल खर्च होता है। इसमें से एक स्तंभ बड़ा है और एक छोटा है लेकिन जब इन्हें माता की आरती के वक्त प्रज्वलित किया जाता है तो यह नजारा बहुत ही अलौकिक होता है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं।

 

देवी सती की कथा

इस मंदिर के स्थापित होने से जो कथा जुड़ी हुई है उसके मुताबिक जब देवी सती अपने पिता दक्ष के बुलाए गए यज्ञ अनुष्ठान में शामिल होने के लिए अपने मायके पहुंची और उन्होंने अपने पिता से शिवजी को इस अवसर पर ना बुलाने का कारण पूछा तो राजा दक्ष ने भोलेनाथ की निंदा करते हुए कई सारी बातें कही।

अपने पिता के मुख से पति का अपमान माता सती से सहन नहीं हुआ और उन्होंने उसी अग्निकुंड में अपना देह त्याग दिया जिसमें अनुष्ठान किया जाने वाला था। माता सती के आग में कूदते ही भगवान शिव क्रोधित हो उठे और उनके जलते हुए देह को लेकर ब्रह्मांड का चक्कर लगाने लगे।

शिवजी के गुस्से के चलते ब्रह्मांड तहस-नहस हो रहा था और सृष्टि को बचाने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया जिससे माता के देह के टुकड़े हो गए और जिन जगहों पर यह अंग गिरे वहीं पर शक्तिपीठ की स्थापना हुई। उज्जैन में माता सती की कोहनी गिरी थी इसलिए हरसिद्धि शक्तिपीठ की स्थापना हुई।

Harsiddhi Mandir

राजा विक्रमादित्य की कहानी

पौराणिक किवंदतियों के मुताबिक माता हरसिद्धि विक्रमादित्य की आराध्य देवी थी और यह जगह उनकी तपोभूमि है। मंदिर के एक कोने में सिंदूर चढ़े हुए कुछ मुंड दिखाई देते हैं जिन्हें विक्रमादित्य का बताया जाता है।

कथाओं के मुताबिक राजा विक्रमादित्य देवी को प्रसन्न करने के लिए हर 12 साल में अपना शीश काटकर उन्हें बलि चढ़ा देते थे और बार-बार उनका मस्तक लौट आता था। 11 बार उन्होंने ऐसा किया लेकिन हर बार उनका सिर वापस उनके शरीर पर आ जाता।

राजा विक्रमादित्य ने 135 साल तक शासन किया लेकिन जब 12वीं बार उन्होंने अपना शीश माता को अर्पित किया तो वह वापस नहीं आया और यह मान लिया गया कि उनका शासन पूर्ण हो गया है। हालांकि जिस मुंड को राजा विक्रमादित्य का बताया जाता है वह देवी वैष्णवी है जिनकी पूजन अर्चन मंदिर के ही पुजारी करते हैं।

इस मंदिर से जुड़ी और भी कई कथाएं और कुछ का उल्लेख वेद और पुराणों में भी किया गया है। बाबा महाकाल की नगरी में होने पर 52 शक्तिपीठों का हिस्सा होने के चलते इस मंदिर की मान्यता काफी अधिक है और उज्जैन आने वाले पर्यटक कभी भी यहां दर्शन करे बगैर नहीं जाते हैं। स्थानीय लोगों की इस मंदिर में गहरी आस्था है और नवरात्रि के समय यहां जमकर भीड़ देखी जाती है।