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भूख से बिलखती 3 साल की बच्ची के लिए मसीहा बना जवान इंदर सिंह यादव दिखेगा डिस्कवरी चैनल पर

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। देश में लगा लॉकडाउन (lockdown) आम जनता के लिए किसी आपात काल से कम नहीं था। कोरोना महामारी (corona pandemic) के बीच इंसान एक दूसरे से मिलना तो दूर उसकी मदद करने के लिए भी आगे नहीं आ रहा था। देश का श्रमिक (labor) अपने घर पैदल जाने को मजबुर था। तकरीबन महीने भर बाद देश की सरकार का मजदूरों की परेशानी पर ध्यान केंद्रित हुआ और सरकार ने श्रमिकों की हालत देखते हुए मजदूर स्पेशल ट्रेन चलाकर उन्हें घर भेजने की व्यवस्था की।

ऐसी ही एक मज़दूरों से भरी ट्रैन भोपाल स्टेशन (bhopal station) पर जब आई तो उस ट्रैन में 3 साल की बच्ची भूख से तड़प रही थी। भूख से तड़पती अपनी बच्ची की परेशानी देख उसकी माँ ने प्लेटफार्म तैनात आरपीएफ (RPF) के जवान से मदद मांगी। महिला ने जवान से कहा कि घंटों से दूध के लिए उसकी बच्ची परेशान हो रही है और कहीं से दूध (milk) की व्यवस्था नहीं हो रही, तो क्या वह नजदीकी स्टॉल से बच्ची को दूध लाकर दे सकते हैं।  आरपीएफ के आरक्षक इंदर सिंह यादव (Inder Singh Yadav) ने तुरंत हां की और स्टाल से दूध लेने चले गए।

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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।