इंदौर (Indore) से एक ऐसा खुलासा हुआ है जिसने पूरे शिक्षा महकमे को हिला दिया है। STF की जांच में पता चला है कि शहर और आसपास के इलाकों में लगभग 80 शिक्षक पिछले कई सालों से फर्जी अंकसूची के आधार पर नौकरी कर रहे थे। हैरानी की बात यह है कि यह पूरा खेल लगभग 20 साल से बिना किसी रोक-टोक के चलता रहा। जिन लोगों पर हमारे बच्चों की पढ़ाई और भविष्य की जिम्मेदारी थी, वही खुद फर्जी कागज़ों से स्कूलों में घुस बैठे थे।
बेरोजगारी के दौर में जहां हजारों युवा असली मेहनत के बाद भी नौकरी नहीं पा रहे, वहीं यह फर्जी शिक्षक मोटी तनख्वाह लेकर आराम से पढ़ा रहे थे। STF की जांच के बाद अब पूरी तस्वीर साफ हुई है कि यह सिर्फ कुछ लोगों की गलती नहीं थी, बल्कि एक पूरा रैकेट चल रहा था जो फर्जी D.Ed अंकसूची बनाकर नौकरी दिलवाता था। इस खुलासे के बाद शिक्षा विभाग और स्थानीय प्रशासन दोनों सवालों के घेरे में हैं।
STF का बड़ा खुलासा
इंदौर और सांवेर के कई सरकारी स्कूलों में ऐसे शिक्षक काम कर रहे थे, जिन्होंने अपने नियुक्ति के लिए नकली D.Ed अंकसूची का इस्तेमाल किया था। STF की जांच में सामने आया कि लंबे समय से जिला पंचायत स्तर पर ही इनकी नियुक्ति की गई थी और बाद में इन्हें संविलियन के जरिए स्थायी कर दिया गया। STF का दावा है कि इस पूरे नेटवर्क में कुछ ऐसे लोग शामिल थे जो फर्जी अंकसूची तैयार करते थे और उसके बदले मोटी रकम ली जाती थी। ये शिक्षक आराम से सैलरी ले रहे थे जबकि असली योग्य उम्मीदवार दर-दर भटक रहे थे।
कैसे चलता था फर्जीवाड़ा
जांच में यह बात साफ हुई है कि पहले इन शिक्षकों को गांवों की पंचायतों के माध्यम से संविदा शिक्षक के रूप में रखा गया। संविदा में तीन साल पूरे होते ही उन्हें शिक्षा विभाग में संविलियन कर दिया जाता था। यहीं सबसे बड़ी लापरवाही हुई, जांच-पड़ताल लगभग नाममात्र की रही। कई अधिकारियों ने दस्तावेज़ों की सत्यापन प्रक्रिया को गंभीरता से नहीं लिया, और इसी लापरवाही का फायदा उठाकर फर्जी शिक्षक स्थायी नौकरी तक पहुंच गए। फर्जी अंकसूची बनाने वाले गिरोह का काम बहुत सोचा-समझा था ऐसे रिजल्ट तैयार किए जाते थे जो देखने में बिल्कुल असली लगें और सत्यापन करने वाले अधिकारी कोई शक न करें।
शिकायतकर्ता का दावा
इस पूरे मामले को सामने लाने वाले शिकायतकर्ता गौरीशंकर राजपूत ने बताया कि उनके पास 130 फर्जी शिक्षकों का डेटा है। इनमें से 80 नाम इंदौर और सांवेर में पोस्टेड शिक्षकों के हैं। उन्होंने कहा कि जैसे ही उन्होंने यह मामला उठाया, कई स्तरों पर इसे दबाने की कोशिश की गई। पिछले छह महीनों से वह लगातार प्रमाण जुटा रहे हैं और अब पूरे दस्तावेज़ तैयार कर STF को सौंप रहे हैं। राजपूत का कहना है कि अगर जरूरत पड़ी तो मामला हाईकोर्ट में ले जाएंगे, ताकि योग्य युवाओं का हक वापस मिले और फर्जी शिक्षक सिस्टम से बाहर हों।
बच्चों का भविष्य किसके हाथों में?
इस फर्जी शिक्षक घोटाले ने सबसे बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, हमारे स्कूलों में पढ़ा कौन रहा था? बच्चों का भविष्य ऐसे लोगों के हाथों में था जिन्होंने न तो असली पढ़ाई की और न ही असली योग्यता। इस घोटाले का असर सिर्फ नौकरी खोने तक सीमित नहीं है। यह पूरा मामला बताता है कि वर्षों तक शिक्षा विभाग में किस तरह लापरवाही और अनदेखी होती रही। कई अधिकारी सवालों के घेरे में आए हैं, क्योंकि बिना सत्यापन के कैसे कोई दर्जनों फर्जी अंकसूची वाले शिक्षक स्थायी हो सकते हैं?
क्या सच में नौकरी जाएगी?
STF ने 80 शिक्षकों को जांच के दायरे में लिया है। जिन 20 शिक्षकों के नाम पुख्ता मिले हैं, उन पर जल्द ही बड़ी कार्रवाई की जा सकती है। अगर साबित हो गया कि अंकसूची फर्जी थी, तो इन शिक्षकों की नौकरी किसी भी वक्त जा सकती है। साथ ही यह भी संभव है कि इन पर धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेज़ इस्तेमाल करने की धाराएं भी लगाई जाएं। सरकार भी इस मुद्दे पर जल्द बड़ा कदम उठा सकती है क्योंकि मामला अब काफी गंभीर हो चुका है और शिक्षा विभाग की छवि दांव पर है।





