इंदौर (Indore) में हाल के महीनों में स्कूल और कॉलेज बसों से जुड़ी कई शिकायतें सामने आईं। कहीं बसें तेज़ रफ़्तार में दौड़ती दिखीं, कहीं ड्राइवर मोबाइल चलाते पाए गए, तो कई मामलों में बसों की फिटनेस पर भी सवाल उठे। इन घटनाओं ने अभिभावकों के मन में यह डर बढ़ा दिया कि रोज़ाना घर से निकलते वक्त बच्चों को सौंपने वाली स्कूल बसें कितनी सुरक्षित हैं। इन्हीं चिंताओं को दूर करने और व्यवस्था को और मजबूत बनाने के लिए गुरुवार को पुलिस कमिश्नर कार्यालय में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई।
इस बैठक में शहर के प्रमुख स्कूलों के प्रशासक, ट्रांसपोर्ट अधिकारी और पुलिस अधिकारी शामिल हुए। पुलिस कमिश्नर संतोष कुमार सिंह ने स्पष्ट कहा कि बच्चों और नागरिकों की सुरक्षा किसी भी स्तर पर समझौते का विषय नहीं है। उन्होंने यह भी जोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों का पूरी कड़ाई से पालन होना चाहिए। बैठक का उद्देश्य सिर्फ नियम बताना नहीं था, बल्कि यह स्पष्ट संदेश देना था कि इंदौर में स्कूल बसों की सुरक्षा व्यवस्था अब पहले जैसी नहीं रहेगी यह और अधिक सतर्क, तकनीकी और जवाबदेह होगी।
इंदौर पुलिस का कड़ा रुख क्यों उठाने पड़े ये कदम?
इंदौर शहर तेज़ी से बढ़ता शहरी केंद्र है, जहाँ प्रतिदिन हज़ारों बच्चे स्कूल और कॉलेज जाने के लिए बसों का उपयोग करते हैं। ऐसे में बसों का सुरक्षित संचालन बच्चों की जिंदगी से सीधे जुड़ा हुआ विषय है। हाल ही में कई शिकायतें आईं कि कई स्कूल बसें तकनीकी खामियों के बावजूद चल रही हैं। कुछ बसों में जीपीएस नहीं था, कई में सीसीटीवी कैमरे लगने के बाद भी वे चालू नहीं रहे, और कई ड्राइवर ऐसे पाए गए जिनके पास भारी वाहन चलाने का वैध लाइसेंस तक नहीं था। यदि किसी भी बस में अचानक ब्रेक फेल हो जाए या बस तेज गति से मोड़ काटे, तो उसके परिणाम बेहद गंभीर हो सकते हैं। बच्चों की सुरक्षा को लेकर इस तरह की लापरवाही बड़ी दुर्घटनाओं की चेतावनी है।
इन्हीं कारणों से अब पुलिस प्रशासन ने यह तय किया कि शहर में स्कूल बसों के संचालन को लेकर कोई ढिलाई नहीं बरती जाएगी। हर बस का रोजाना निरीक्षण, स्कूल और ट्रांसपोर्ट अधिकारियों की जवाबदेही, और तकनीकी मॉनिटरिंग को अनिवार्य बनाया गया। बच्चों की सुरक्षा को लेकर यह सख्ती बहुत देर से सही, पर बेहद जरूरी कदम माना जा रहा है।
स्कूल और कॉलेज बसों में जीपीएस और सीसीटीवी की अनिवार्यता क्या बदलेगा इससे?
बैठक में यह स्पष्ट कहा गया कि हर बस में जीपीएस सिस्टम अनिवार्य है। इसका उद्देश्य केवल लोकेशन ट्रैक करना नहीं है, बल्कि बस की स्पीड, रूट और स्टॉप को मॉनिटर करना भी है। यह तकनीक न सिर्फ पुलिस और स्कूल प्रशासन के लिए मददगार है, बल्कि अभिभावकों को भी बस की सटीक जानकारी मिल सकेगी। कई मामलों में देखा गया है कि बसें तय मार्ग से हटकर शॉर्टकट लेती हैं या कुछ स्टॉप बिना जानकारी दिए छोड़ देती हैं। जीपीएस इन सभी अनियमितताओं पर रोक लगाएगा।
सीसीटीवी कैमरे का उद्देश्य भी सिर्फ रिकॉर्डिंग रखना नहीं है। यह बच्चों की सुरक्षा और अनुशासन से सीधे जुड़ा हुआ है। कैमरों के चालू रहने से ड्राइवर और कंडक्टर किसी भी अनुचित व्यवहार से बचते हैं और किसी भी आपातकालीन स्थिति में फुटेज सबसे बड़ा सबूत साबित होता है। कई मामलों में बच्चों की गिरने, झगड़े, या अन्य घटनाओं की सही जानकारी सीसीटीवी ने ही दी है। इसलिए कैमरों का हमेशा चालू रहना अब अनिवार्य शर्त होगी।
40 किमी/घंटा से तेज नहीं चल सकेगी कोई भी स्कूल बस
पुलिस को कई बार शिकायत मिली कि शहर में कई स्कूल बसें तेज रफ़्तार में चलती हैं, खासकर हाईवे या चौड़ी सड़कों पर। तेज गति से चलती बसें न केवल बच्चों के लिए खतरा हैं, बल्कि ट्रैफिक नियमों का उल्लंघन भी करती हैं। इसी बात को ध्यान में रखते हुए अब हर बस में स्पीड गवर्नर लगाना अनिवार्य होगा, जिसके चलते बस की गति 40 किमी प्रति घंटे से अधिक नहीं की जा सकेगी। यह व्यवस्था बच्चों के चढ़ने और उतरने के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यही समय सबसे अधिक दुर्घटनाओं का कारण बनता है।
स्पीड गवर्नर लगने से बस ड्राइवरों को भी अनुशासन में रहना पड़ेगा। पुलिस की योजना है कि महीने में एक बार स्पीड डेटा को भी जांचा जाएगा, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि ड्राइवर नियमों का पालन कर रहे हैं।
ड्राइवरों की मेडिकल जांच
अब तक स्कूल बस ड्राइवरों की मेडिकल जांच को लेकर ज्यादातर स्कूल सिर्फ कागज़ी औपचारिकता निभाते थे। लेकिन अब पुलिस ने इसे गंभीर प्रक्रिया बनाने का निर्णय लिया है। हर ड्राइवर की आंखों की रोशनी, ब्लड प्रेशर, मानसिक स्वास्थ्य और अन्य शारीरिक परीक्षण नियमित रूप से किए जाएंगे। यदि किसी ड्राइवर की सेहत गाड़ी चलाने योग्य नहीं पाई जाती, तो उसे तुरंत हटा दिया जाएगा। बच्चों की सुरक्षा के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों में से एक है।
इसके अलावा हर ड्राइवर के पास वैध, भारी वाहन चलाने का लाइसेंस होना अनिवार्य है और उसका पुलिस वेरिफिकेशन भी किया जाएगा। माना जाता है कि ड्राइवर का स्वभाव और अनुशासन बच्चों की यात्रा को सुरक्षित बनाता है, इसलिए अब स्कूलों को भी ड्राइवरों के चयन में अधिक जिम्मेदार बनाया जाएगा।
फिटनेस और सुरक्षा उपकरण
स्कूल बसों में ब्रेक, टायर, इंजन, इमरजेंसी गेट और फायर सिलेंडर जैसे सुरक्षा उपकरणों की स्थिति कई बार बेहद खराब पाई गई है। इसी वजह से अब बसों की फिटनेस रिपोर्ट को नियमित रूप से जांचा जाएगा। यदि किसी बस में फर्स्ट एड किट, फायर एक्सटिंग्विशर या इमरजेंसी गेट अनुपस्थित पाया गया, तो उसकी अनुमति तुरंत रद्द कर दी जाएगी। स्कूलों को भी अब यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी बसें तकनीकी रूप से पूरी तरह सुरक्षित हों।
बैठक में यह भी कहा गया कि किसी भी हालत में पुराने, खराब या क्षतिग्रस्त बसों को सड़क पर नहीं उतरने दिया जाएगा। यह नियम केवल बस ऑपरेटरों के लिए नहीं बल्कि स्कूल प्रशासन पर भी लागू होगा। अब स्कूलों पर भी कानूनी कार्रवाई की जा सकेगी।





