राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत के बीच का अंतर भूले एमआईसी सदस्य, निगम सभापति ने माना त्रुटि

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इंदौर| मध्यप्रदेश सरकार को सबसे अधिक राजस्व देने वाली इंदौर नगर निगम का बजट सत्र आज से प्रारंभ हुआ। जिसमे महापौर मालिनी गौड़ ने निगम का बजट पेश किया। हालांकि बजट पेश करने के पहले जो कुछ हुआ उसने इंदौर नगर निगम की परिषद के सदस्यों पर सवाल खड़े कर दिए। दरअसल, हुआ यूं कि बजट सत्र प्रारंभ करने से पहले  राष्ट्रगीत गाने के लिए सदन की ओर से कहा गया लेकिन सदन के सदस्यों जिनमे कांग्रेसी पार्षद भी शामिल थे उन्होंने राष्ट्रगीत की शुरुआत करने के बजाय राष्ट्रगान गाना प्रारंभ कर दिया। इसके बाद महापौर मालिनी गौड़ ने राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान में अंतर भूले सदस्यों से राष्ट्रगीत गाने को कहा जिसके चलते राष्ट्रगान को बीच मे रोकना पड़ा। इसके बाद इसी मुद्दे पर सियासत गरमाने लगी।

दरअसल, जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले ऐसे जनप्रतिनिधि भी है जिन्हें राष्��्रगीत याने वन्दे मातरम और राष्ट्रगान याने जन- गण- मन के बीच अंतर नही समझ आता है। जिस वक्त ये सब कुछ हुआ उस वक्त निगम के अधिकारी भी वहां मौजूद थे लेकिन वे मूकदर्शक बन देखते रहे। इस मामले में जब निगम सभापति से जब पूछा गया तो उन्होंने इस बात को स्वीकारा और कहा कि ये त्रुटि है जो किसी से भी हो सकती है और इस बात के लिए सदन ने खेद भी व्यक्त किया है | वही उन्होंने कहा की सदन की ओर से ऐसी त्रुटि की स्वीकृति नही दी जा सकती। इधर, इस गम्भीर मामले में महापौर ने विपक्ष में बैठी कांग्रेस पर निशाना साधा और कहा कि राष्ट्रगान देश की आन, बान और शान है और विपक्ष ने इसका अपमान किया है, जो शर्मनाक है और गलत भी है। वही निगमायुक्त आशीष सिंह ने  कहा पहले राष्ट्रगीत गाने का बोला गया था लेकिन अगर किसी ने राष्ट्रगान शुरू कर दिया है तो इस मामले में लिखित प्रतिवेदन मांगा गया है। अगर किसी की शिकायत है तो उसे स्वीकार कर आधिकारिक तौर पर शिकायत की जाएगी और जो भी निर्णय आएगा उसका पालन करवाया जाएगा। हालांकि इस मामले में किसी पर भी नामजद शिकायत नही की गई है और यदि की जाएगी तो निश्चित ही उस पर कार्रवाई होना तय माना जा रहा है।  फिलहाल, बजट के साथ ही इंदौर नगर निगम में एक नई बहस शुरू हो गई जिस पर शायद आने वाले दिनों में अलग – अलग लोगो द्वारा आरोप – प्रत्यारोप कर राजनीति की जा सकती है लेकिन सवाल ये उठता है कि राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान के अंतर को पांच साल तक कुर्सी पर काबिज रहने वाले कब समझेंगे।


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