जबलपुर।
खाली खजाने के कारण कंगाली के दौर से गुजर रही मध्य प्रदेश सरकार ने अब हजारों परिवारों की मुश्किलें बढ़ा दी है। कंगाली का आलम यह है कि अब मुखिया के आकस्मिक निधन पर आश्रित परिवार को मिलने वाली रकम भी सरकार नहीं दे पा रही है,तो वही खाली खजाने का हवाला देकर अधिकारी आवेदकों को भटका रहे है।आलम यह है कि नगर निगमों से लेकर पंचायतों और नगर परिषदों में ऐसे मामलों का अंबार लगा हुआ है, जिनमें मुखिया के निधन पर परिवारों ने आर्थिक मदद की गुहार लगाई हुई है। इन सब के बीच उन लोगों की मुश्किलों की परवाह किसी को नहीं है जिन्होंने अपने परिवार के मुखिया को अचानक हमेशा के लिए खो दिया है।
जबलपुर के उपनगरीय इलाके रांझी में रहने वाली नीतू साहू के पति की मौत इस साल जनवरी में सिर के ऑपरेशन के बाद हो गई थी, जिसके बाद नीतू के सामने दुःखो का पहाड़ टूट पड़ा है,और नीतू के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है…क्योंकि सरकार की ओर से मुखिया के आकस्मिक निधन पर आश्रित परिवार को मिलने वाली रकम बीते 9 माह भी नीतू को नहीं मिल पाई है, जबकि पति की मौत के बाद से नीतू ने सरकार से मिलने वाली आर्थिक सहायता के लिए नगर निगम के चक्कर काटते काटते दिन रात एक कर दिए, लेकिन आर्थिक सहायता के नाम पर एक धेला भी न मिल सका।
नीतू के मुताबिक उसके पति ऑटो चलाते थे,जिससे परिवार की जरूरतें किसी तरह पूरी हो जाती थी,लेकिन पति की मौत के बाद न तो घर की जरूरतें पूरी हो पा रही है और न ही बच्चों के स्कूल की फीस ही जमा हो रही है।यूं तो किसी की भी परिवार के मुखिया के आकस्मिक निधन पर हमेशा से ही सरकारी रकम से परिवार को आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश की जाती रही है लेकिन यह पहला मौका है जब कांग्रेस सरकार ने कंगाली और बजट न होने का रोना रोते हुए इस तरह की मदद पर पूरी तरह से पाबंदी लगा दी है, जिसके चलते अकेले जबलपुर नगर निगम में ही करीब 360 मामले धूल खा रहे है,और यही वजह भी है,जिसके कारण सरकारी दफ्तरों में मुखिया के निधन के दस्तावेज लेकर मदद का इंतजार करने वाले पीड़ितों को अकसर देखा जा सकता है लेकिन न तो सरकार का दिल पसीज रहा है और न ही अफसरों को इन पर रहम ही आ रहा है.
यही वजह है कि थक हार कर लोग सरकारी मदद का इंतजार करने मजबूर हैं।प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर शुरू से ही आक्रामक तेवर दिखा रही भाजपा भी अब इस मामले में खुलकर पीड़ित और गरीब परिवारों के हक में आवाज़ उठा रही है..भाजपा नेताओं का सीधा आरोप है कि प्रदेश सरकार बदले की भावना से काम कर रही है जिसके चलते जनता की भलाई की शिवराज सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं के नाम बदलने के साथ उन्हें बंद तक कर दिया गया है,उनकी दलील है कि पूर्व में भाजपा सरकार द्वारा चलाई जा रही इस तरह की योजनाएं गरीब परिवारों के लिए संजीवनी का काम करती थी, लेकिन नाम बदलने के बाद भी जरूरतमंदों को बेवजह भटकाया जा रहा है।आलम ये है कि पिछले करीब 10 माह में ऐसे प्रकरणों को रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया है जिसमें परिवार के मुखिया के निधन पर आश्रितों ने सरकारी मदद की गुहार लगाई है, आश्रितों को मिलने वाली सरकारी मदद पर बेवजह पाबंदी लगाए जाने से आश्रित परिवार जहां दर-दर की ठोकरें खाने मजबूर हैं तो वही खाली खजाने का हवाला देकर अधिकारी आवेदकों को भटका रहे है, इन सब के बीच उन लोगों की मुश्किलों की परवाह किसी को नहीं है जिन्होंने अपने परिवार के मुखिया को अचानक हमेशा के लिए खो दिया है।