जबलपुर।संदीप कुमार।
जिले में बड़ी तादाद में फर्जी डॉक्टर लोगों का इलाज कर रहे हैं. इनमें से कई डॉक्टरों के पास तो डिग्रियां ही नहीं है. कुछ लोगों के पास होम्योपैथिकृ-आयुर्वेदिक की डिग्रियां हैं, लेकिन इसके बावजूद एलोपैथी का इलाज कर रहे हैं, समस्या सामने आने के बाद जबलपुर जिला प्रशासन की टीम ने छापामार कार्रवाई कर कुछ फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ एफआईआर की थी, लेकिन अचानक से ये कार्रवाई रुक गई. जिन लोगों के खिलाफ मामले बनाए भी गए थे. जिनको प्रैक्टिस करने से रोका गया था. अब वह लोग भी दोबारा से प्रैक्टिस करने लगे हैं।
इस कार्रवाई को आधार बनाकर जबलपुर के एक पत्रकार ने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका लगाई है, जिसमें इन डॉक्टरों के खिलाफ पुख्ता कार्यवाई क्यों नहीं की गई और इन्हें दोबारा प्रैक्टिस करने से रोका क्यों नहीं जा रहा है. कितने डॉक्टरों पर कार्यवाही की गई है. इन सब मुद्दों पर हाईकोर्ट में सवाल उठाए गए, हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर स्वास्थ्य विभाग और जबलपुर आयुक्त और पुलिस महा निरीक्षक से जवाब मांगा है.कोर्ट ने कहा है कि आखिर कितने लोगों के खिलाफ कार्यवाही की गई थी और फिर उसका क्या अंजाम हुआ। 4 दिन में प्रशासन को अपना जवाब कोर्ट के सामने रखना है. कोरोना संकट काल में थोड़ी सी लापरवाही भी जानलेवा साबित हो सकती है. ऐसे में यह अनपढ़ डॉक्टर किसी बड़ी समस्या की जड़ बन सकते हैं, लेकिन प्रशासन ने इन पर पूरी तरह रोक क्यों नहीं लगाई, यह एक बड़ा सवाल है, अब इसका जवाब प्रशासन को कोर्ट में देना होगा।
जनहित याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि अकेले जबलपुर में 28 झोलाछाप की नामजद शिकायत की गई। इसके बावजूद उनके खिलाफ ठोस कार्रवाई नदारद रही। न तो उनके खिलाफ केस दर्ज हुए, न गिरफ्तार किया गया और न ही क्लीनिक सील किए गए। इससे उनके हौसले बढ़े हुए हैं। जाहिर सी बात है कि स्वास्थ्य विभाग से सांठगांठ के बिना झोलाछाप का अस्तित्व संभव ही नहीं है।