Jabalpur News : जबलपुर में आयुष्मान अस्पताल के डॉक्टर द्वारा किए गए इलाज में बरती गई लापरवाही से एक बच्ची की जिंदगी बर्बाद हो गई थी। दरअसल, संगम कालोनी में रहने वाली 21 साल की सखी जैन आज देख नहीं सकती। ऐसा नहीं है कि सखी जन्म से ही आंखों से नेत्रहीन थी बल्कि सखी की आंखों की रोशनी डॉक्टर डॉ. मुकेश खरे की वजह से चली गई। बता दें कि सखी का जन्म साल 2002 में कटनी के शैलेंद्र जैन के घर हुआ था। उसकी प्रीमेच्योर डिलीवरी थी और साढ़े 7 माह में ही सखी का जन्म हो गया था।
जानें पूरा मामला
नवजात शिशु का वजन भी बहुत कम था। सामान्य तौर पर प्रीमेच्योर डिलीवरी के दौरान बच्चों को अस्पताल में भर्ती किया जाता है। शैलेंद्र जैन बच्ची को इलाज के लिए जबलपुर में आयुष्मान अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टर मुकेश खरे को दिखाया। शैलेंद्र ने अपनी बेटी को भर्ती करवा दिया। एक महीने भर्ती रहने के बाद शैलेंद्र जैन अपनी बेटी को लेकर कटनी चले गए। कुछ दिन बाद शैलेंद्र जैन को पता चला कि प्रीमेच्योर बच्चों को यदि ऑक्सीजन दी जा रही है तो उन्हें एक बार आंख के डॉक्टर को जरूर दिखा देना चाहिए क्योंकि यदि जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन दे दी जाए तो आंखों की रेटिना के बीच में बबल्स बन जाते हैं और आंखों में दिखाना बंद हो जाता है। इसलिए पिता ने डॉक्टर से संपर्क किया लेकिन उनकी वजह से बच्ची के आंखों की रोशनी चली गई।
20 साल बाद मिला न्याय
तब शैलेंद्र जैन ने आयुष्मान अस्पताल के डॉक्टर मुकेश खरे के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का निर्णय लिया। जिसके बाद वो स्टेट कंज्यूमर फोरम भोपाल पहुंचे और उन्होंने आयुष्मान अस्पताल और सखी के लिए न्याय मांगा। वहीं, स्टेट फोरम ने सखी के लिए न्याय करते हुए 20 साल बाद फैसला सुनाया। जिसमें 40 लाख रुपया मुआवजा और इस पर ब्याज सहित लगभग 1 करोड रुपए सखी को देने के लिए आदेश दिया है । बता दें कि शैलेंद्र जैन ने 2004 में क्लेम किया था।
जबलपुर से संदीप कुमार की रिपोर्ट