जबलपुर, संदीप कुमार। शिक्षा एक ऐसा ज्ञान है जिसे पाकर इंसान आसमान की बुंलदियों को छू लेता है। कई बार अशिक्षा भी व्यक्ति के अपराधी बनने का कारण बन जाती है। इसीलिए अब जेल की चारदीवारी के अंदर शिक्षा की लौ जलेगी। जी हां, हम बात कर रहे है जबलपुर के नेताजी सुभाषचंद्र बोस केंद्रीय जेल की जहां पर अपने अपराधों की सजा काट रहे कैदी अब पढ़ाई कर एग्जाम भी दे रहे हैं, ताकि जेल की कोठरी से बाहर आने के बाद खुद अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
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जबलपुर की नेताजी सुभाषचंद्र बोस केंद्रीय जेल, यह जेल देश में ही नही बल्कि पूरी दुनिया में जानी जाती है। इस जेल में नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंग्रेजी द्वारा दो बार कैदी बनाकर रखे जा चुके हैं। जब से भारत आजाद हुआ उसके बाद से ही जेलों का स्वरूप भी बदलने लगा। जेल में बंद कैदी जो अशिक्षित होने के कारण भी किसी न किसी अपराध को अंजाम देकर अपने गुनाह की सजा काट रहे हैं, उन्हें अब जेल में शिक्षित किया जा रहा है जिससे जब वो जेल के बाहर अपने कदम रखे तो वो अपना जीवन बसर कर अपने पैरों पर खड़े हो सकें।
जबलपुर की जेल में पिछले 2009 में जेल अधीक्षक रहे गोपाल ताम्रकार ने एक कल्पना की थी कि जेल में इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के द्वारा कैदियों को शिक्षा प्रदान की जा सके। जेल अधीक्षक गोपाल ताम्रकार के द्वारा तैयार प्रस्ताव 1 जनवरी 2010 को इग्नू के चांसलर के द्वारा देश के राष्ट्रपति के सामने रखा गया था जिसे पास करते हुए राष्ट्रपति ने केंद्रीय जेल जबलपुर के कैदियों को निशुल्क शिक्षा देने का अधिकार दिया गया। इतना ही नहीं, जबलपुर की पहल पर इग्नू को देश भर की सभी जेलों में बंद कैदियों को निशुल्क शिक्षित करने का अवसर भी प्राप्त हुआ। इग्नू द्वारा पिछले 11 साल से जबलपुर के कैदियों को निशुल्क शिक्षा दी जा रही है और इन 11 वर्षों में 2 हजार से ज्यादा कैदी एमबीए, बीए, एमए सहित अन्य कोर्स की डिग्री ले चुके हैं। इस साल लगभग 220 कैदी, जिनमें 30 महिला कैदी भी शामिल हैं, अलग अलग परीक्षा के एग्जाम दे रहे है। एग्जाम दे रहे युवा, बुजुर्ग पुरुष और महिला कैदी शिक्षा पाकर बेहद खुश है।
2009 में जेल अधीक्षक रहे गोपाल ताम्रकार एक बार फिर इसी जेल में पदस्थ हुए है और उन्हें इस बात का गर्व है कि उनके प्रयास से आज नेताजी सुभाषचंद्र केंद्रीय जेल के साथ पूरे हिंदुस्तान की जेलों में इग्नू द्वारा कैदियों को शिक्षित किया जा रहा है। बिना ज्ञान के व्यक्ति अधूरा माना जाता है और जहां ज्ञान का प्रकाश होता है वहां पर सकारात्मक सोच उभर कर सामने आती है। सकारात्मकता अच्छे विचार लेकर आती है। आज की इस भाग दौड़ वाली जिंदगी में सकारात्मक सोच की इंसान को बेहद जरूरत है जिससे समाज में फैली बुराइयों को खत्म किया जा सकता है। उम्मीद यही की जा रही है कि जब यह बन्दी अपनी शिक्षा पूरी कर समाज की मुख्यधारा में वापस लौटेंगे तब इनकी सकारात्मक सोच की वजह से समाज को एक नई दिशा मिलेगी।