जबलपुर।
पूरे भारत में ऐसी कोई विद्युत वितरण कंपनी नहीं है जो घाटे में ना हो…. ये कहना है प्रदेश के ऊर्जा मंत्री प्रियव्रत सिंह का । एक दिवसीय दौरे पर जबलपुर पहुंचे मंत्री प्रियवत सिंह ने नियामक आयोग में दायर विद्युत वितरण कंपनियों की याचिकाओ पर भी सफाई पेश की। उनका कहना था कि नियामक आयोग के समक्ष विगत 4 वित्तीय वर्षों में हुए घाटे को लेकर दायर याचिकाएं एक नियमित प्रक्रिया के तहत है जो कंपनियों की वित्तीय स्थिति को बतलाती है। इस मामले में मंत्रालय में इसकी कोई पुष्टि नहीं है लेकिन फिर भी अगर घाटे को दर्शाते हुए कंपनियों ने इसे वसूलने की मांग की है तो सरकार जरूर हस्तक्षेप करेगी ।
ऊर्जा मंत्री ने विद्युत वितरण कंपनियों की वित्तीय हालातों को लेकर भाजपा सरकार को एक बार फिर जिम्मेदार इहराया ।उन्होंने कहा कि सभी वितरण कंपनियां 2004 में जीरो बैलेंस के साथ शुरू हुई थी… भाजपा शासन में 2004 से लेकर 2018 तक करीब 27 प्रतिषत बिजली को महंगा किया गया । भले ही वितरण कंनपियो ने 4 वित्तीय वर्षो मे घाटा दर्षाया हो लेकिन ज़रूरी नही कि इसके लिए विद्युत दरो को महॅगा किया जाए।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की विद्युत वितरण कंपनियों ने भारी भरकम घाटा दर्शाते हुए विद्युत नियामक आयोग के पास दर्ज की गई 4 याचिकाओं में 24,888 करोड़ रुपए का भारी भरकम घाटा बताया है यह घाटा पिछले 4 वर्षों का बताया जा रहा है। विद्युत नियामक आयोग के पास दर्ज की गई याचिकाओं में साल 2014 से लेकर 2018 तक का जिक्र किया गया है और बीते एक साल मे अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई है । मध्य प्रदेश पावर मैनेजमेंट कंपनी की तरफ से वित्तीय वर्ष 2014-15, 2015-16,2016-2017 और 2017-18 की याचिकाएं लगाई गई हैं।
इसमें मध्य प्रदेश पूर्व, मध्य और पश्चिम विद्युत वितरण कंपनी शामिल हैं। दरअसल कंपनियां प्रस्तावित आंकलन के बाद अंतिम आय और व्यय का ब्यौरा तैयार करती है जिसमें नुकसान होने पर कंपनी आगामी सालों में इसकी भरपाई के लिए विद्युत नियामक आयोग के पास याचिकाएं दायर करती है।
आँकड़ो के मुताबिक
वित्तीय वर्ष
2014-15 में 5156.88 करोड़ रुपए
2015-16 में 7156.94 करोड़ रुपए
2016-17 में 7247.55 करोड़ रुपए
2017-18 में 5327.54 करोड़ रुपए का घाट कंपनियो को हुआ है।