जबलपुर,संदीप कुमार। बिरजू महाराज अपने जीवनकाल में दो बार जबलपुर आए और दोनों बार उन्होंने अपने नृत्य से जबलपुर के लोगों का मन मोह लिया था। बिरजू महाराज की पहली यात्रा वर्ष 1957-58 में भातखंडे संगीत महाविद्यालय के भवन निर्माण के लिए धन राशि जुटाने के उद्देश्य से हुई थी। यह कार्यक्रम शहीद स्मारक में आयोजित हुआ था। बिरजू महाराज के कत्थक नृत्य को देखने जबलपुर के कला रसिक की भीड़ शहीद स्मारक में उमड़ पड़ी थी। उस कार्यक्रम में बिरजू महाराज ने भाव प्रदर्शन करने के लिए ठुमरी की लाइन गाई थीं-‘’रूकत डगर श्याम।‘’ भातखंडे महाविद्यालय के तबला वादक गजानन ताड़े ने लाइन को बार-बार गाते थे और उन लाइन में बिरजू महाराज ने अलग-अलग भाव प्रदर्शित किए थे। उस समय भातखंडे संगीत महाविद्यालय की विद्यार्थी साधना उपाध्याय हुआ करती थीं। उन्होंने बिरजू महाराज के कार्यक्रम की टिकट घर-घर जा कर बेची थीं।
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बिरजू महाराज की दूसरी व अंतिम जबलपुर यात्रा वर्ष 2013 में उस समय हुई जब उन्हें हर्ष व सुनयना पटेरिया ने सुशाीला पटेरिया की स्मृति में आयोजित होने वाले वार्षिक कार्यक्रम में 5 अक्टूबर को आमंत्रित किया था। उस समय बिरजू महाराज का स्वास्थ्य बेहतर नहीं था, लेकिन शहीद स्मारक के कार्यक्रम में बिरजू महाराज ने नृत्य तो किया ही उन्होंने गाया और तबला वादन भी किया था। मूलत: बनारस की रहने वाली सुनयना पटेरिया ने जानकारी दी कि बिरजू महाराज लखनऊ घराने के थे, लेकिन बनारस घराने से उनकी नजदीकी रही। बनारस में सुनयना पटेरिया के मायके के परिवार से बिरजू महाराज का गहरा नाता रहा है। सुनयना पटेरिया ने कहा कि बिरजू महाराज का अत्यंत सरल व विनम्र व्यक्तित्व था। जबलपुर यात्रा के पूर्व बिरजू महाराज का स्वास्थ्य बेहतर नहीं था, लेकिन वे कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुति देने जबलपुर आए और यहां आ कर उन्हें प्रसन्नता हुई थी। इसका कारण बिरजू महाराज को जबलपुर के दर्शक संगीत की समझ रखने वाले व कला का आदर करने वाले महसूस हुए थे। जबलपुर के कई नृत्यांगानाओं ने बिरजू महाराज की कथक वर्कशाप में भाग लिया था।