जबलपुर/संदीप कुमार
मंत्री बनने के सपने देख रहे जबलपुर के भाजपा विधायकों के अरमां आंसुओं में बह गए, हालांकि इस बात का अंजाजा विधायको को पहले से ही था कि इस बार उनको मंत्री पद मिलना मुश्किल ही नहीं, लगभग नामुमकिन है। फिर भी लिस्ट फाइनल होते-होते वह इस जुगाड़ में लगे थे कि कैसे भी करके उनका नाम मंत्रिमंडल की लिस्ट में आ जाए और वह मंत्री बन सके, लेकिन ऐसा हो न सका।
वहीं भाजपा विधायकों के समर्थक अपने-अपने विधायकों के मंत्री बनने का सपना बुनने लगे थे और ये चर्चा भी करने लगे थे कि उनके नाम मंत्रिमंडल लिस्ट में शामिल हैं। लेकिन सभी की उम्मीदों में पानी फिर गया और जबलपुर के एक विधायक तक को मंत्रिमंडल में स्थान नहीं मिल सका।
जबलपुर से यह विधायक थे मंत्री पद की दौड़ में
जब तक मंत्रिमंडल का विस्तार नहीं हुआ था तब तक राजनीतिक गलियारों में विधायकों के समर्थक उनके नामों की चर्चा करते हुए देखे जा सकते थे। जिसमें शहर से इकलौते विधायक अशोक रोहाणी और ग्रामीण विधानसभा पाटन के विधायक अजय विश्नोई के मंत्री बनने के नामों की चर्चाएं जोरो पर थी। लेकिन मंत्रिमंडल की घोषणा होने के बाद ये चर्चाएं सिफर ही साबित हुई।
जबलपुर की उपेक्षा की चर्चा
वहीं मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद जैसे ही विधायको ने मंत्री पद की शपथ ली, दबी जुबान में जबलपुर की उपेक्षा की जाने होने लगी है। कार्यकर्ता अब इस बात की चर्चा करते हुए दिखाई देने लगे कि कम से कम किसी एक विधायक को मंत्री पद का दायित्व पार्टी को दे देना चाहिए था, लेकिन पार्टी ने जबलपुर के लिए वह भी नहीं किया।
सिंधिया के कारण बिगड़ा खेल
अब राजनीतिक गलियारों में इस बात की चर्चाएं होने लगी है कि मप्र में जब-जब जिस भी पार्टी की सरकारें हुआ करती थी, तब-तब उस पार्टी की सरकारों के द्वारा जबलपुर की झोली में कम से कम एक मंत्री पद का दायित्व दिया जाता रहा, लेकिन जोड़-तोड़कर बनी भाजपा सरकार में पहली बार ऐसा हुआ है कि जबलपुर के विधायकों में से किसी भी एक विधायक को मंत्री पद के लायक पार्टी ने नहीं समझा गया। इसके पीछे पार्टी के कार्यकर्ता व राजनीतिक विशेषज्ञ सिंधिया समर्थकों को स्थान देना बताया जा रहा है। इसी वजह से जबलपुर के विधायको को मंत्री पद से नहीं नवाजा जा सका है।