जबलपुर जिले में लॉक डाउन के दौरान कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने में जिला प्रशासन काफी हद तक सफल भी हुआ है। लोगों को घरों में रहने की जहाँ जिला प्रशासन लगातार अपील कर रहा है वही स्वयं सेवी संस्था कर्फ्यू के चलते गरीब और भूखे लोगों को खाना भी मुहैया करवा रहे। लेकिन इन सबसे दूर इंसानों के अलावा कई जानवर भी हैं जो इस लॉक डाउन में भूखे रहने को मजबूर है।
कुछ स्वयं सेवी संस्थाओं ने किया जंगल का रुख
जबलपुर में लॉक डाउन का आज 14 वां दिन है, सड़कें पूरी तरह से सुनसान हैं वाहनों की आवाजाही पर भी रोक लगी है। ऐसे में जंगलो में रहने वाले जानवर जो कि वाहनों से गुजरने वालो के भरोसे ही अपनी भूख मिटाते थे उनके लिए ये स्वयं सेवी संस्था मदद के लिए आई है। शहर की माँ रेवा परिवार संस्था बीते एक सप्ताह से रोजाना भूखे बंदरों को खाना खिलाने के काम कर रही है। शुरुआत में चंद लोगों ने भूखे जानवरो का पेट भरने की शुरुआत की थी जो बढ़ते बढ़ते आज एक बड़ी टीम बन गई है और अपने स्तर से खाने की व्यवस्था कर इन मूक जानवरो का पेट भर रही है।
कभी ब्रेड, कभी टमाटर तो कभी केले
माँ रेवा परिवार के सदस्य रोजाना दोपहर 12 बजे से 4 बजे तक अमझर घाटी पर इन जानवरों के बीच रहते है भर पेट खाना खिलाने के बाद इनके लिए पानी की व्यवस्था भी रहती है क्योंकि इस समय जंगलों के सरोवर भी सूख गए हैं। संस्था के लोग इन जानवरों को कभी ब्रेड, कभी टमाटर, कभी केले तो कभी चना खिलाया करते हैं।
एक आवाज सुनकर आ जाते हैं सैकड़ों बंदर
माँ रेवा संस्था के सदस्य जसबीर सिंह बताते है कि शुरू में इनके झुंड को देखकर डर लगता था पर अब जबकि बीते कुछ दिनों से वो रोज यहाँ आ रहे है तो डर भी खत्म हो गया है। ये जानवर आराम से हाथों से खाना लेकर बेठ जाते है और मजे से खाया करते हैं।
संस्था ने अन्य लोगों से भी मदद का आह्वान
माँ रेवा संस्था के सदस्यों ने शहर की अन्य संस्थाओं से आह्वान किया है कि वो इंसानों के साथ साथ इन मूक जानवरो की मदद के लिए भी आगे आये क्यो इनका कोई नही है और ये आपके-हमारे सहारे है।