जबलपुर, डेस्क रिपोर्ट। नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और ऐसे में अब देवी मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ दर्शनों के लिए उमड़ रही है, आज आपको ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताते है जहां साल भर तो श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है लेकिन नवरात्रि में यह संख्या लाखों में पहुँच जाती है, कहा जाता है कि यह राजा कर्ण की कुलदेवी है। त्रिपुर सुंदरी का यह मंदिर जबलपुर से 13 किमी दूर भेड़ाघाट रोड पर स्थित है। 11वीं शताब्दी में बने इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहां की मूर्ति 7वीं शताब्दी की है। यहां लोग मन्नत के तौर पर नारियल बांधते हैं। पूरा होने पर खोलते हैं। मंदिर के पीछे एक व्यवस्थित नगर बसा था, जिसकी पुष्टि पुरातत्व की खुदाई में हो चुकी है।
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तेवर के पास स्थित त्रिपुर सुंदरी मंदिर को लेकर कई तरह की किवदंतियां हैं। मंदिर अलौकिक प्राकृतिक वातावरण में स्थापित है। मंदिर के चारों ओर दिव्य मूर्तियों की एक शृंखला मिलती है, जिसका केंद्र बिंदु त्रिपुर सुंदरी मंदिर है। 5 किमी क्षेत्र के चारों ओर 52 झरने हैं। मंदिर के पीछे त्रिपुर नगर बसा था। मान्यता है कि यहां त्रिपुरासुर नाम का राक्षस का आतंक था। उसके वध के लिए भगवान विष्णु ने मां त्रिपुर सुंदरी का पूजन किया था। फिर उनके प्रभाव से भगवान शंकर ने त्रिपुरासुर राक्षस का संहार किया था। मान्यता है कि राजा कर्णदेव मां का अनन्य भक्त था। राजा रोज खौलते हुए कढ़ाहे में कूद जाता था। मां भक्षण करने के बाद अमृत से उसे जीवित कर प्रसन्न होकर सवा मन सोना देती थीं। वर्तमान में इस मंदिर का प्रबंधन पुरातत्व विभाग करता है। वर्तमान में जहां मंदिर स्थापित है, उसे हथियागढ़ के नाम से जाना जाता था। इस कारण मां को हथियागढ़ की मां के रूप में माना जाता था। मां ने स्वप्न में त्रिपुर सुंदरी नाम से पुकारने का आदेश दिया, तभी से त्रिपुर सुंदरी मां के नाम से जानी जाने लगीं। इनके तीन रूप राजराजेश्वरी, ललिता और महामाया के माने जाते हैं।
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त्रिपुर केंद्र तांत्रिक पीठ हुआ करता था। यहां तांत्रिक कठोर साधना कर भगवान शिव को प्रसन्न करते थे। पुराणों में दर्ज है कि मूर्ति शिव के पांच रूपों से बनी थी, जिसमें तत्पुरुष, वामदेव, ईशान, अघोर और सदोजात शामिल हैं। पुरातत्व विभाग यहां खुदाई कर एक व्यवस्थित नगर होने की पुष्टि कर चुका है। मंदिर के आसपास थोड़ा भी खुदाई करने पर कल्चुरी काल की सामग्री निकल आती है। एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह किए अधलेटी है प्रतिमा
मंदिर में स्थापित माता की मूर्ति भूमि से अवतरित हुई हैं। यह मूर्ति केवल एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह किए अधलेटी अवस्था में मौजूद है। त्रिपुर सुंदरी मंदिर में माता महाकाली, माता महालक्ष्मी और माता सरस्वती की विशाल मूर्तियां स्थापित हैं। यहां शक्ति के रूप में 3 माताएं मूर्ति रूप में विराजमान हैं, इसलिए मंदिर के नाम को उन देवियों की शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक माना गया है। एक शिलाखंड के सहारे पश्चिम दिशा की ओर मुंह किए अधलेटी है।