जबलपुर। धान खरीदी इस बार सरकार के लिए आफत बन सकती है। पहले 25 नवम्बर और अब 2 दिसम्बर के बाद शुरू हुई धान की खरीदी पटरी पर नही आ पाई है। आलम ये है कि सैकड़ो किसानों ने अब तक अपने अनाज को घरों से नही निकाला है, जबकि कुछ ऐसे है जो आज भी खुले आसमान की नीचे अपनी उपज रखे उसकी तकवारी कर रहे है। इस बार लगता है किसान के साथ साथ सरकार के लिए भी ये धान खरीदी आफत बन सकती है।
कर्ज के बोझ और केन्द्र से राशि न मिल पाने की दलीलों के बीच किसानों से धान की खरीदी इस साल शुरूआत से ही विवादों में घिरी हुई है। पहले प्रदेश में धान खरीदी का काम 25 नवंबर से शुरू होना था लेकिन बाद में इसे बदलकर 2 दिसम्बर कर दिया गया। धान खरीदी केन्द्रों की जानकारी न मिल पाने और खरीदी की तारीख बढऩे की सूचना न मिल पाने से किसानों ने पिछले साल बने खरीदी केन्द्रों में ही अपना सैकड़ो क्विंटल अनाज रख दिया। फिर जब तारीख बदली तो करीब एक सप्ताह तक अपने अनाज की चैकीदारी भी की। आसमान से आफत के तौर पर गिर रही ओस ने भी अन्नदाता को सताए रखा, लेकिन अब जब खरीदी शुरू हुई तो खरीदी केन्द्रों में बदलाव कर दिया गया। ऐसे मे जहॉ किसानों ने अपनी धान डम्प की वहॉ से कई किलोमीटर दूर धान खरीदी केन्द्र बना दिए गए।
बात अकेले जबलपुर जिले की करे तो यहॉ 61 केन्द्रो में धान की खरीदी होना है जिसमें से अभी 17 केन्द्र ही शुरू हो पाए है। जिले के कलेक्टर का कहना है कि 61 में से 40 खरीदी केन्द्र वेयरहाउस के पास ही बनाए जाने का प्रस्ताव है ताकि परिवहन के अपव्यय से बचा जा सके। वही किसानों द्वारा धान को अनाधिकृत केन्द्रों में रखे जाने पर कलेक्टर ने इसे किसानों की गलती बताया। भले ही प्रशासनिक महकमा खुद मामले में किसानों की गलती मान रहा हो लेकिन दूसरी ओर किसान और उनके नेता अपना अलग पक्ष रखते हैं। पहले तो खरीदी केन्द्र अब तक शुरू न होने और अंतिम समय में खरीदी के समय मे बदलाव आने से किसानों को दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। खुले आसमान में धान रखे होने से ओस से नमी भी आ गई है जबकि कुछ हिस्सा खराब भी हो गया है। ऐसे में किसान जाए तो आखिर जाए कहॉ, अब या तो किसान खुद के व्यय पर परिवहन कर खरीदी केन्द्रों पर अपना अनाज ले जाए या फिर उसे वही सडऩे दे। कांग्रेस के ही पूर्व विधायक और किसान- नेताओं ने इस सिलसिले में कलेक्टर से भी मुलाकात की है। निर्धारित समय के बाद भी धान की खरीदी पूर्ण रूप से शुरू न होना और खरीदी केन्द्रों का अब तक न खुलना कई सवाल खड़े करता है। बहरहाल देखना होगा कि कही धान सरकार के लिए गले की फांस न बन जाए।