खंडवा।सुशील विधानी।
जीत हमेशा सत्य की होती है और हम सत्य के लिए लड़ते रहे आखिर हाईकोर्ट ने रासुका की धारा हटाई है मेरे पति के खिलाफ विभाग के अधिकारियों ने अपनी पीठ थपथपा ने के लिए उन्हें टारगेट बनाया था उन पर रासुका लगाई थी लेकिन हमने भी हार नहीं मानी और निरंतर लड़ते रहे क्योंकि हमने कुछ गलत नहीं किया था छोटे व्यापारियों को टारगेट बनाया जाता है लेकिन शहर में ऐसे कई बड़े व्यापारी हैं जो खुलेआम अवैध धंधे संचालित करते हैं उन पर खाद्य एवं औषधि विभाग और जिला प्रशासन की आंखें क्यों बंद हो जाती है
खाद्य एवं औषधि विभाग में बरसों से खंडवा में डेरा जमाए हैं अधिकारी
खंडवा खाद्य एवं औषधि विभाग में राधेश्याम गोले खाद्य सुरक्षा अधिकारी केएस सोलंकी खाद्य सुरक्षा अधिकारी मनजीत जामले मुकेश हेडाऊ जो खाद्य विभाग एवं औषधि विभाग के अधिकारी हैं जो कई वर्षों से खंडवा में डटे हुए हैं कई बार निलंबित होते हैं और पूरी तनख्वाह का लाभ लेते हुए अधिकारियों को खुश करते हुए पुनः खंडवा लौट आते हैं इनमें नंबर वन पर हैं राधेश्याम गोले कई बार सस्पेंड हो और खंडवा लौट आओ सूत्रों के अनुसार कई बड़े व्यापारियों से इनके अच्छे संबंध हैं जिनके चलते निलंबित होने के बाद भी बड़े ठाटबाट से ऐसो आराम की जिंदगी जीते हैं ऐसे अधिकारियों पर क्यों नहीं राज्य शासन कार्रवाई करता जो परसों से एक ही जगह टिके हुए हैं
नकली गुड़ बनाने वाले व्यापारी पर क्यों नहीं हुई कार्रवाई
शहर के बीचोबीच नकली गुड़ का कारखाना पूर्व में पकड़ा जा चुका है इसके बावजूद भी अधिकारी सैंपल की दिखावटी लोगों दिखाने के लेने के लिए ले तो लेते हैं लेकिन कार्रवाई अभी तक नहीं हो पाई नाही f.i.r नकली गुड बड़े पैमाने पर बनाया जा रहा था जहां कीड़े मकोड़े के साथ छिपकली तक इस गुड में पाई गई इसके बावजूद अधिकारी क्यों मौन बैठे हुए हैं. वहीं जिले के मध्यान भोजन में चर्बी वाला घी से बच्चों का भोजन बनाया जा रहा था इस मामले में भी आखिर खाद्य एवं औषधि विभाग के अधिकारी क्यों नहीं कार्रवाई कर पाए ऐसे कई प्रश्न है जो इन अधिकारियों की कार्यशैली पर प्रश्नचिन्ह उठाते हैं
क्या था मामला
जिला प्रशासन द्वारा खाद्य पदार्थों में मिलावट के आरोपी दूध व्यवसायी सुदीप पिता पवन जैन निवासी रामकृष्णगंज के खिलाफ लगाई गई रासुका (राष्ट्रीय सुरक्षा कानून) को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। 14 अगस्त को सोनकर माेहल्ला स्थित सुदीप के मकान पर कोतवाली व पदम नगर थाना पुलिस ने संयुक्त कार्रवाई करते हुए 160 किग्रा मिलावटी घी, 15 किग्रा मावा, एसेंस व 200 लीटर केरोसिन और एक्सपायरी डेट का सोया सॉस की बोतल, मिल्क पावडर जब्त किया कर खाद्य औषधि एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज किया था।
28 अगस्त 19 को प्रयोगशाला भोपाल से सेंपल रिपोर्ट अमानक आने पर सुदीप जैन के खिलाफ कलेक्टर ने रासुका की कार्रवाई की। आदेश निकलते ही कोतवाली पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था। सुदीप फिलहाल रीवा जेल में है।रासुका की कार्रवाई काे चैलेंज करते हुए सुदीप के पिता पवन जैन ने हाईकोर्ट में 5 अगस्त 19 को रीट पिटिशन लगाई। 8 नवंबर को दो जजों की बेंच जस्टिस अतुल श्रीधरण व जगदीश प्रसाद गुप्ता ने सुनवाई करते हुए। जिला कलेक्टर द्वारा की गई रासुका की कार्रवाई को खारिज कर दिया है। हाईकोर्ट ने रासुका अधिनियम के तहत जो आदेश पारित किया है, उसको अनुच्छेद 21 के अनुसार स्वतंत्रता का हनन करना माना है। अनुच्छेद 21 से जोड़ते हुए आदेश पारित किया हैं। प्रदेश सरकार द्वारा चलाए जा रहे मिलावट के खिलाफ अभियान में हाईकोर्ट का संभवता यह पहला मामला है।
न्याय मिला… सुदीप जैन की पत्नी अर्पिता ने कहा कार्रवाई का विरोध पहले ही दिन से कर रहे थे। जिला प्रशासन द्वारा जल्दबाजी में रासुका की कार्रवाई की गई थी। हाईकोर्ट से हमें न्याय मिला, जिस पर भरोसा था। नुकसान व भरपाई को लेकर आगे क्या करना है परिवार से चर्चा के बाद निर्णय लेंगे।
प्रदेश में 31 लोगों पर रासुका की कार्रवाई
प्रदेश में 19 जुलाई से मिलावटी खाद्य पदार्थ निर्माताओं और विक्रेताओं के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान के दौरान अब तक 31 कारोबारियों के खिलाफ रासुका तहत कार्रवाई की गई है। अभियान के तहत 87 मामलों में एफआईआर दर्ज की गई है। यह पहला मौका है जिसमें रासुका हटाई है।
हाईकोर्ट की टिप्पणी : यह प्रकरण ऐसा नहीं था…
यह ऐसा प्रकरण नहीं था, जिससे देश की सुरक्षा खतरे में आ जाए। व्यवसायी अगर मिलावटी खाद्य सामग्री बेच रहा था तो उसके उपयोग से कुछ लोगों को खतरा हो सकता था। इससे देश की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं था। इस प्रकरण में जिला कलेक्टर यह निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि व्यवसायी सुदीप जनसामान्य के लिए खतरा व घातक है, क्योंकि उससे जब्त मावा और घी अपमिश्रित है। कलेक्टर का यह निष्कर्ष निरर्थक है। कलेक्टर द्वारा दिया गया आदेश अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान का उल्लंघन प्रतीत होता है। इसलिए यह आदेश खारिज किया जाता है। प्रकरण में आवेदक ने कोई मुआवजा, नुकसान, भरपाई का दावा नहीं किया है। इस कारण उसे मुआवजा या नुकसान की पूर्ति नहीं की जा सकती, लेकिन उसके नुकसान व भरपाई का अधिकार हम सुरक्षित रखते हैं, आवेदक यदि चाहे तो नुकसान भरपाई के लिए राज्य मानव अधिकार आयोग अथवा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग जाकर अपना दावा प्रस्तुत कर सकता है।