वसूली को लेकर किन्नरों के दो गुट में जमकर मारपीट, कई चोटिल, पुलिस ने दर्ज किया मामला

खंडवा, सुशील विधाणी। किन्नरों के दो गुटों में का विवाद अब सड़क पर आ गया है। बाजार हाट में वसूली को लेकर निकले किन्नरों के दोनों गुटों में जमकर मारपीट हुई।  बता दें कई वर्षों से असली किन्नर और नकली किन्नर में बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया है, इसी का नतीजा है कि आज मारपीट और खूनी संघर्ष देखने को मिल रहा है। समाज में होने वाले कई कार्यक्रमों में किन्नरों का शामिल होना शुभ माना जाता है।लेकिन खंडवा में असली किन्नर और नकली किन्नर में लगातार विवाद बढ़ता जा रहा है। मामला है क्षेत्र में वसूली का, खंडवा में आज शनि मंदिर पर बड़ा बाजार लगता है, जिसमें असली किन्नर कई वर्षों से मांग कर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। लेकिन नकली किन्नर करिश्मा सनी उर्फ करीना चिड़िया मैदान मेघना और सचिन जो कि नकली किन्नर है, क्षेत्र के बाजारों में और कॉलोनी में जाकर वसूली करते हैं।

अपनी वसूली को लेकर असली किन्नर गुट और नकली किन्नर गुट में दो किन्नर गुटो के बीच रविवार की दोपहर उपजे विवाद इतना बढ़ गया कि, मामला कोतवाली थाने तक पहुंच गया। कोतवाली थाने में काफी हंगामा होने के बाद पुलिस वालों ने मामला मोघट थाने का बता कर किन्नरों को वहां पहुंचा दिया। सभी किन्नर नकली किन्नरों का ऑटो में भरकर मोघटथाने पहुंच गए। सितारा बाई गुरु रेखा बाई 23 किन्नरों को लेकर मोघट थाने पहुंची, जहां सितारा बाई किन्नर व करिश्मा किन्नर के बीच विवाद उपजा और करिश्मा और उसकी साथी करीना उर्फ सनी के साथ तीन अन्य किन्नरों ने के साथ जमकर मारपीट कर दी।


About Author
Gaurav Sharma

Gaurav Sharma

पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।