MP Tourism News: बाबा महाकाल की पवित्र नगरी अवंतिका यानी उज्जैन की गिनती सप्तपुरियों में होती है। इस नगरी को ना जाने कितने धर्मगुरु, राजा और महंतों ने जन सहयोग से धार्मिक नगरी बनाया है। इस महातीर्थ में कई अलौकिक मंदिर हैं जिनसे ना सिर्फ आस्था जुड़ी हुई है बल्कि इनकी मनमोहक कला यहां आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेती है। आज हम आपको यहां स्थित प्राचीन और चमत्कारिक स्थलों के बारे में जानकारी देते हैं। इन जगहों की खासियत यह है कि यहां पहुंचने के बाद आपको ईश्वरीय शक्ति का एहसास अपने आप ही होने लगेगा।
भर्तृहरि गुफा
यह जगह उज्जैन के पर्यटक स्थलों में सबसे ज्यादा फेमस है। गढ़कालिका मंदिर से थोड़ी दूरी पर पर स्थित ये गुफा पर्यटकों को असीम शांति का आनंद देती है। मान्यताओं के मुताबिक लगभग 12 वर्षों तक राजा भर्तृहरि ने यहां पर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से जुड़ी कई कहानियां प्रचलित है। उनमें से कुछ उनकी पत्नी पिंगला से भी जुड़ी हुई है। ये गुफा 3000 से 3500 साल पुरानी बताई जाती है। यह कहा जाता है कि राजा को इस तरह से तप करते देख देवों के राजा इंद्र को लगा कि कहीं वह शक्तिशाली होकर स्वर्ग पर आधिपत्य ना जमा ले इसलिए उन्होंने वज्र फेंका। उनके प्रहार से एक बड़ा सा पत्थर टूट कर गिरने लगा जिसे राजा ने अपने हाथों से रोक लिया लेकिन तपस्या को जारी रखा। कई वर्षों तक वो इसी अवस्था में तपस्या करते रहे जिससे उनके पंजे का निशान पत्थर पर बन गया जो आज भी राजा भर्तृहरि की प्रतिमा के ऊपर दिखाई देता है। इस जगह पर कई अन्य गुफाएं भी हैं जिनमें से एक गुफा से चारों धाम जाने का रास्ता होने की बात भी कही जाती है। हालांकि, अब इन रास्तों को सुरक्षा की दृष्टि से बंद कर दिया गया है।
वेधशाला
काल गणना की दृष्टि से उज्जैन का पूरे विश्व में विशेष महत्व माना जाता है। यहां कई प्राचीन यंत्र लगे हैं जिनकी मदद से सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की चाल का अध्ययन किया जाता है। जानकारी के मुताबिक जयपुर के महाराजा सवाई राजा जयसिंह द्वितीय ने 5 वेधशालाओं का निर्माण करवाया था। उज्जैन भी उन्हीं जगहों में से एक है जहां पर 1719 से इसे संचालित किया जा रहा है। इस वेधशाला में ईट पत्थरों से तैयार किए गए यंत्र आज भी उचित तरीके से काम करते हैं। सम्राट यंत्र, नाड़ी विलय यंत्र, शंकु यंत्र, दिगंश यंत्र, भित्ति यंत्र जैसे कई पौराणिक यंत्र यहां पर स्थापित है। जिन्हें देखने के लिए दूर दूर से लोग यहां पहुंचते हैं।
गढ़कालिका मंदिर
तांत्रिकों की आराध्य देवी गढ़ कालिका के इस मंदिर के प्राचीन इतिहास के बारे में आज तक कोई जानकारी नहीं मिल सकी है। लेकिन बताया जाता है कि महाभारत काल में इसकी स्थापना की गई थी। इसकी मूर्ति सतयुग काल की है और महाराज हर्षवर्धन द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराए जाने की जानकारी भी सामने आती है। इसके बाद ग्वालियर स्टेट काल में ग्वालियर के राजा ने इसका पुनर्निर्माण करवाया था। गढ़कालिका का मंदिर शक्तिपीठ में तो शामिल नहीं है लेकिन उज्जैन में देवी हरसिद्धि शक्तिपीठ होने के चलते इस मंदिर का महत्व काफी ज्यादा है। इस मंदिर के पास गणेशजी का भी बहुत प्राचीन मंदिर स्थापित है जिन्हें स्थिरमन गणेश के नाम से जाना जाता है।
सांदीपनि आश्रम
उज्जैन भगवान श्री कृष्ण की शिक्षा स्थली है। ऋषि सांदीपनि कि इस तपोभूमि को द्वापर युग से ही धर्म, अध्यात्म और वैदिक शिक्षा के लिए उत्तम स्थान माना जाता है। इस जगह का पौराणिक महत्व ज्यादा इसलिए भी है क्योंकि भगवान कृष्ण, बलराम और सुदामा ने यहीं पर वेदों की शिक्षा प्राप्त की थी। लगभग 5500 वर्ष पूर्व श्रीकृष्ण ने यहां शिक्षा हासिल की थी। यह जगह खास इसलिए है क्योंकि यहां पर श्री कृष्ण, बलराम और सुदामा की विद्यार्थी अवस्था को दिखाया गया है जो दुनिया भर में कहीं भी देखने को नहीं मिलती। यहां नजर आने वाली लीलाएं अक्सर ही लोगों को आकर्षित करती है।