मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में रेत माफियाओं का अवैध कारोबार लगातार पैर पसार रहा है। दरअसल प्रशासन और खनिज विभाग की नाकामी अब इसे लेकर साफ नजर आ रही है। वहीं पिछले एक साल पर नजर डाली जाए तो इसमें रेत माफियाओं के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई होती हुई नजर नहीं आईं है। दरअसल अधिकारी अपनी कुर्सी को बचाने के लिए अब माफियाओं की चौखट पर हाजिरी देते नजर आ रहे हैं।
दरअसल गौरिहार क्षेत्र के चन्द्रपुरा और परेई बॉर्डर पर खड़ी 400 से अधिक ओवरलोड ट्रकों की कतारें इसका ताजा उदाहरण दिखाई दे रहा हैं, जहां बीते तीन दिनों से ट्रकों की कतारें यूपी सीमा पार करने का इंतजार भी कर रही हैं। ऐसे में अब इसे लेकर भी कई गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं।
शासन को हो रहा भारी राजस्व नुकसान
वहीं इन ओवरलोड ट्रकों की रॉयल्टी की समय सीमा भी खत्म हो गई है मगर न तो खनिज विभाग और न ही अन्य कोई प्रशासनिक अधिकारी इसे लेकर कोई कार्रवाई करने को तैयार है। दरअसल ऐसा लग रहा है कि जैसे इन ट्रकों के पास जाना मतलब अपनी कुर्सी से हाथ धो बैठना है। गौरतलब है कि रेत माफियाओं ने करोड़ों की रेत का अवैध उत्खनन कर शासन को भारी राजस्व नुकसान भी पहुंचाया है। इतना ही नहीं इसके साथ ही निजी और शासकीय भूमि को भी इन्होंने बीहड़ बनाकर छोड़ा है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए पर्यावरणीय संकट बनता हुआ दिखाई दे रहा है।
कंपनी पहले से ही ब्लैकलिस्टेड
जानकारी के अनुसार यह कंपनी पहले से ही ब्लैकलिस्टेड है, फिर भी जिले में दबंगई के साथ काम कर रही है। दरअसल सत्ता की परछाई में ही यह माफिया नदियों का चीरहरण कर रहे हैं। वहीं रामपुरघाट में शासकीय तालाब और बारबन्द का खेल मैदान तक रेत से समतल कर दिया है। दरअसल मवईघाट, बारबन्द और रामपुरघाट जैसे क्षेत्र जो केन नदी के पास में ही बसे हुए हैं, अब बाढ़ और भू-क्षरण जैसी प्राकृतिक आपदाओं के खतरे में भी आ गए हैं। हालांकि इसके बावजूद शासन-प्रशासन आंख बंद करके ये सब तमाशा देख रहे हैं। अब ऐसे में माना जा रहा है कि आने वाले विधानसभा चुनाव में इसका मुद्दा उठाया जा सकता है।
छतरपुर से सौरभ शुक्ला की रिपोर्ट





