मंडला आदिवासी जिला हैं, जहाँ बहुतायत में आदिवासी वर्ग निवास करता है। पूरे मंडला जिले में नागपंचमी का त्योहार बड़ी धूम धाम से मनाया जाता हैं ।नागपंचमी का त्योहार पूूूरी गोंडी समाज के लोग संस्कृति से मंत्रों के उच्चारण से मनाते हैं,जो कि सबसे अद्भुत होता हैं,लेकिन महामारी के असर से यह पर्व भी अछूता नहीं है।
इस त्योहार का महत्व जिले में इसलिये भी है क्योंकि अनेक गांव में नागदेवता की पूजा पारंपरिक तरीके से की जाती है औऱ इसी दौरान पंडों को नाग के भाव आते हैं, जिसे ” पटा बैठलना” कहते है, औऱ सर्पदंश से पीड़ित व्यक्ति का विष निकालने का दावा किया जाता है, लेकिन इस साल कोरोना के चलते ऐसा कुछ नहीं हुआ है।
मंडला से महज 3 किलोमीटर दूर बिनैका गाँव हैं, जहाँ वर्षो से आदिवासी परंपरा को बनाएं रखने के लिए गाँव के लोग नांगपंचमी में नागों की पूजा खास तौर पर करते हैं।आज के दिन गाँव के लोग़ सुबह के वक्त इकठ्ठा होते हैं और सभी गाँव के बाहर बने आस्तिक मुनि के मंदिर पहुंचते हैं, जहाँ सबसे पहले लोग़ यहां पूजा अर्चना करके वापिस अपने गाँव पहुंचते हैं। फिर गाँव के पंडा के यहां पटा बैठाला जाता हैं, याने लकड़ी का पटा बैठालकर नाग देवता की प्रतीक स्वरूप मूर्ति रखी जाती हैं। ढोलक मंजीरे के साथ नाग देवता को मनाया जाता हैं।
कुछ देर तक बाद पूजा अर्चना के बाद पंडे के भक्तों को भार आता हैं, झूमते हुए अपनी सर्पों के समान मस्ती में चूर भक्त अपने पंडों के पास पहुंचते हैं, फिर पंडे द्वारा भक्तों के भाव या भार को शांत किया जाता हैं।इस सारी पूजा अर्चना के दौरान यदि कोई व्यक्ति जो की सर्प दंश से ग्रसित होता हैं, उसे इन्हीं भक्तों द्वारा पीड़ित का जहर निकाला जाता हैं।
भक्तों और पंडों का मानना हैं की सर्प दंश से ग्रसित व्यक्ति को वे पूरी तरह ठीक कर सकते हैं। लेकिन कोरोनावायरस का असर लोगों के त्योहारों पर भी पड़ रहा हैं। लोग़ जिस तरह से नांगपंचमी का त्योहार मनाते आ रहें अब उस तरीके से नही मना पा रहें। इस गाँव के लोगों नें भी त्योहार में सोशल डिस्टेंस बनाने की बात की हैं।