मुरैना/संजय दीक्षित
कर्फ्यू के दौरान सिंथेटिक दूध से मिलावटी पनीर बनाने का कारोबार धड़ल्ले से जारी है। सिंथेटिक दूध और मिलावटी पनीर के मामले में कुख्यात मुरैना में इस व्यापार पर रोक नहीं लग पा रही है। कोरोना काल में इसमें और इजाफा हुआ है, क्योंकि सभी अधिकारी कोरोना नियंत्रण में व्यस्त हैं। वहीं मिलावटखोर बेरोकटोक मिलावटी पनीर को धड़ल्ले से बाहर भेज रहे हैं। गर्मी में खासतौर पर मई, जून और जुलाई में दूध का उत्पादन कम हो जाता है। इसके बावजूद जिले से मिलावटी पनीर भारी मात्रा में बाहर भेजा जा रहा है।
एक अनुमान के हिसाब से जिले में रोजाना करीब 12 लाख लीटर दूध का उत्पादन होता है, लेकिन गर्मी में यह 6 से 7 लाख लीटर तक सीमित हो जाता है। ऐसे में दूध से बनने वाले उत्पाद की मात्रा भी कम हो जाती है। लेकिन इस साल ऐसा नहीं हुआ। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बेशक ट्रेनें बंद हैं, लेकिन जिले से मिलावटी पनीर महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों में भेजा जा रहा है। अंतर सिर्फ इतना है कि अब मिलावटी पनीर लोडिंग वाहन से अन्य राज्यों में भेजा जा रहा है। शहर में ही करीब डेढ़ दर्जन से अधिक पनीर बनाने की फैक्ट्री हैं। खास बात यह है कि शहर के लोग केवल एक डेयरी से ही अधिक पनीर खरीदते हैं। इसके बावजूद सभी फैक्ट्रियां चल रही हैं। इन फैक्ट्रियों से पनीर सीधे लोडिंग वाहनों में पैक होकर दूसरे शहरों व राज्यों में भेजा जा रहा है। इस समय गांवों से दूध बहुत कम आ रहा है, लेकिन मिलावटखोर के सामने दूध की कमी नहीं आ रही। वे पहले सिंथेटिक दूध बनाते हैं और बाद में उससे पनीर बनाते हैं, जिसे आम व्यक्ति आसानी से समझ नहीं सकता।
शहर की अधिकतर पनीर बनाने की डेयरी अब हाइवे के किनारे पहुंच गई हैं, इसलिए वे पनीर बनाकर सीधे दूसरी जगहों पर भेज देते हैं। वर्तमान में खाद्य सुरक्षा विभाग के अफसर कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं। इस बात का फायदा मिलावटखोर पूरी तरह से उठा रहे हैं। बताया जाता है कि पिछले साल जुलाई में जिले में जब मिलावटी दूध के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई तो मिलावटखोरों को काफी घाटा हुआ था, लेकिन लॉकडाउन और कोरोना ने उनके व्यवसाय को बढ़ा दिया है।