MP Tourism : भारत का घूमने के लिए आगे से बेहद खूबसूरत जगहों में से एक है। यहां कई प्राकृतिक धार्मिक और ऐतिहासिक स्मारकों का समायोजन देखने को मिलता है। इतना ही नहीं आज भी कई जगह ऐसी है जहां इतिहास को महसूस करने का मौका मिलता है। आज हम आपको ग्वालियर के ऐसे महल के बारे में बताने जा रहे हैं जहां कई प्रकार के आधुनिक और दुर्लभ वाद्य यंत्र है।
लेकिन क्या आप जानते हैं पहले के वक्त में जब संगीत सुनने के लिए आज से ऐसी व्यवस्था नहीं हुआ करती थी? वह किस प्रकार से संगीत सुनते थे? नहीं जानते होंगे लेकिन अगर आप भी पहले के साधनों को और संगीत यंत्रों का खजाना देखना चाहते हैं तो ग्वालियर के दुर्ग स्थित गुजरी महल का दीदार जरूर करें।
यह महल बेहद ही प्रसिद्ध है यहां दूर-दूर से पर्यटक घूमने के लिए और वाद्य यंत्रों का खजाना देखने के लिए आते हैं। इस ऐतिहासिक धरोहर में एक संग्रहालय में तैयार संगीत दरघा ले बेहद खूबसूरत है। यहां महारानी मृगनयनी महाना संगीतकार बैजू बावरा से संगीत की शिक्षा प्राप्त किया करती थी। खास बात यह है कि यहां पर ही संगीत की सभाओं का आयोजन किया जाता था। ऐसे में संगीत प्रेमी देश ही नहीं विदेशों से भी यहां आते हैं।
MP Tourism : ग्वालियर का गुजरी महल
हमेशा से ही ग्वालियर का संगीत से गहरा नाता रहा है। यहां कई महान संगीतकारों का जन्म हुआ है। यही उनकी कर्म स्थली है। कहा जाता है कि ग्वालियर में पत्थर भी ताल में लुढ़कता है और बच्चा भी सुर में रोता है। मियां तानसेन और बैजू बावरा जैसे महान संगीतकारों का यहां से गहरा नाता है।
यहां पर ही ध्रुपद गायन जैसे कई बड़े संगीत की रचना हुई है। आज हम आपको गुजरी महल में मौजूद दुर्लभ संगीत यंत्रों का खजाना बता रहे हैं। अगर आप भी संगीत प्रेमी है और मध्यप्रदेश घूमने आने का प्लान बना रहे हैं या फिर आ चुके हैं और कही अच्छी जगह जाना चाहते हैं तो गुजरी महल का दीदार जरूर करें।
यहां है दुर्लभ यंत्रों का खजाना
यहां आपको संगीत और ग्वालियर का कितना गहरा नाता है इसका समायोजन देखने को मिलता है। इस जगह पर संगीतकारों द्वारा दान की गई यंत्र भी रखे हुए है। जिन्हे दीर्घा में स्थान दिया गया है। अभी इस महल में पैरों से चलने वाला हारमोनियम रखा हुआ है। साथ ही दुर्लभ वाद्य यंत्र जैसे मृदंग, तानपुरी, स्वरमंडल, सारंगी, तबला, सितार, इकतारा, दिलरुबा, इसराज, सरोद, बांसुरी सहित कई संगीत यंत्र यहां मौजूद है। सैकड़ों वर्ष पहले लिखे गए ध्रुपद संगीत की तान आज भी गुजरी महल में मौजूद है।