Dhamoni fort : मध्यप्रदेश में घूमने के लिए एक से एक ऐतिहासिक स्थल मौजूद है। यहां का इतिहास और दृश्क वाकई सबसे अलग है। इन दिनों पर्यटक भी सबसे ज्यादा मध्यप्रदेश में घूमने के लिए आ रहे हैं। वह सबसे ज्यादा रूचि धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों में दिखा रहे हैं। दरअसल, एमपी में कई प्रसिद्ध स्थल है जिनकी वास्तु कला को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं।
आज हम आपको सागर जिले से 44 किलोमीटर दूर स्थित एक धामौनी किला के बारे में बताने जा रहे है जो बुंदेलखंड के समीप है उसके समृद्ध इतिहास को आज भी संजोया जाता है। ये किला इतना खास है कि यहां सिर्फ किले की सुरक्षा के लिए ही तीन गहरी खाई बनी हुई है। ये खाई किले की सुंदरता को बढ़ा देती है। खाई होने की वजह से इस किले में सिर्फ एक ही रास्ता दिया गया है जिससे पयटक अंदर जा और आ सकते हैं। चलिए जानते है किले के बारे में कुछ रोचक बातें –
धामौनी किला –
धामौनी किला को 50 एकड़ जमीन पर बनाया गया है। इस किले की वास्तुकला काफी सुन्दर है। इसे देखने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। दरअसल, इसमें 52 बुर्ज बनाई गई है जो इसकी सुंदरता और ज्यादा बढ़ा देता हैं। हालांकि अब इन बुर्जों में से कुछ ही सुरक्षित रह गई है। आप भी अगर मध्यप्रदेश आए हुए है तो इस किले का दीदार करने के लिए आ सकते हैं।
ये किला वाकई बेहद प्राचीन और प्रसिद्ध है। इस किले को राजा रानी के लिए बनाया गया था। खास बात ये है कि किले में राजा-रानी का महल, राजा की कचहरी, विशाल हाथी दरवाजे है जो बेहद खूबसूरत हैं। इतना ही नहीं किले में 52 कोठियां बनाई गई है जिन्हे भूलभुलैया के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा एक रानी की बावड़ी भी है जो बेहद विशाल और सुंदर है।
धामौनी किला बुंदेलखंड का एक सबसे प्रसिद्ध और विशाल दुर्ग में से एक माना जाता है। इसमें बुंदेलों का राज काफी वक्त तक रहा। लोगों की रक्षा के लिए इस किले में एक विशाल रक्षा प्राचीन का निर्माण किया गया था। जो लगभग 60 फीट ऊंचा और 20 फीट चौड़ा था। आज के वक्त में यह किला सामरिक और सांस्कृतिक दृष्टि से काफी ज्यादा और महत्वपूर्ण है। अगर आप यहां पर वर्षा ऋतु के समय में आ जाते हैं तो आपको कीचड़ से भरे रास्ते को पार करते हुए इस किले में जाने को मिलेगा। अगर यह रास्ता बनाकर तैयार कर दिया गया तो बुंदेलखंड का सबसे आकर्षक पर्यटन स्थल यह किला रहेगा।
इतिहास –
गढ़ा मंडला के शासक सूरतशाह ने इस धामौनी किले को बनवाया था। इस किले का निर्माण 16वीं शताब्दी में हुआ। निर्माण के बाद कुछ वक्त तक इस किले पर दुर्ग मुगल सुल्तानों के साथ ओरछा के राजा वीर सिंह देव का अधिकार रहा। लेकिन बाद में महाराष्ट्र के भोंसले शासकों ने इस पर अपना कब्जा जमा लिया। ऐसे में 18वीं शताब्दी में अंग्रेजों ने इस कर कब्जा कर लिया। एक वक्त पर यहां पर हाथी बेचने के लिए एक बड़ा सा बाजार लगता था, जिसका आज भी वर्णन किया जाता है।