Sat, Dec 27, 2025

भस्मासुर के प्रकोप से बचने के लिए एमपी की इस रहस्यमयी गुफा में छुपे थे महादेव, ऐसी है मान्यता

Written by:Ayushi Jain
Published:
भस्मासुर के प्रकोप से बचने के लिए एमपी की इस रहस्यमयी गुफा में छुपे थे महादेव, ऐसी है मान्यता

MP Tourism : मध्यप्रदेश के सतपुड़ा में हजारों साल पुरानी एक रहस्यमयी गुफा मौजूद है। जिसका उल्लेख शिवपुराण में भी किया गया है। दरअसल एमपी टूरिज्म के सतपुड़ा की हरी-भरी पहाड़ी पर बनी भगवान शिव की गुफा गुप्त स्थान पर आज भी मौजूद है। यहां दूर-दूर से पर्यटक घूमने के लिए आना पसंद करते हैं। इस गुफा तक जाने के लिए पर्यटकों को दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए जाना पड़ता है।

इतना ही नहीं खड़ी चढ़ाई करते हुए साथ ही जंगलों के बीच जंगली जानवरों के बीच से होते हुए उसे गुफा तक पहुंचाना पड़ता है। लेकिन कई बार लोग जंगली जानवर के बीच से गुफा तक नहीं पहुंच पाते हैं। लेकिन जो भी यहां पहुंच जाता है उसका मन प्रसन्न हो जाता है। क्योंकि कहा जाता है कि भस्मासुर से बचने के लिए भगवान शिव सतपुड़ा की इस गुफा में ही छिपे थे। इस वजह से यहां की मान्यता काफी ज्यादा है।

MP Tourisms : सिंदूर चढ़ाने की है मान्यता 

यह गुफा नर्मदा पुरम जिले के इटारसी से सिर्फ 18 किलोमीटर दूर स्थित सतपुड़ा के घने पहाड़ों पर स्थित है। इस गुफा में भोलेनाथ का अति प्राचीन शिवलिंग मौजूद है। जहां सिंदूर चढ़ाने की प्रथम सालों से चली आ रही है। कहा जाता है कि भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए भक्त यहां मौजूद शिवलिंग पर सिंदूर चढ़ाते हैं। इतना ही नहीं सिंदूर चढ़ाने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और भक्तों की हर मनोकामना पूर्ण करते हैं।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भस्मासुर जब शिवजी के पीछे पड़ गए थे तो उनके प्रकोप से बचने के लिए सतपुड़ा की पहाड़ियों पर बनी इस गुफा में शिवजी छुप गए थे। इतना ही नहीं छुपाने के लिए शिवजी यहां लिंग के रूप में स्थापित हुए और उन्होंने अपने ऊपर सिंदूर का लेप कर लिया ताकि भस्मासुर को उनके वहां होने का जरा सा भी शक ना हो और वह उसे शिवलिंग ही मान ले।

उसे दिन के बाद से ही यहां मौजूद शिवलिंग पर सिंदूर चढ़ाने की प्रथा शुरू हुई। आदिवासी समुदाय ने इस जगह की खोज की इतना ही नहीं वहीं लोग बड़ा देव के रूप में शिवजी की पूजा अब तक करते आ रहे हैं। उन्हीं लोगों के द्वारा इस जगह का संचालन किया गया है। कहा जाता है कि यह स्थान प्राचीन काल से आदिवासियों के राजा महाराजा का भी पूजन स्थल बना हुआ है। इस वजह से यहां की मान्यता और ज्यादा है।