बालाघाटः आधुनिकता में भी व्याप्त है रूढ़िवादी परंपरा, चंदा नहीं देने पर 14 परिवार का किया सामाजिक बहिष्कार

बालाघाट,डेस्क रिपोर्ट। आधुनिकता के दौर में भी समाज अपनी रूढ़िवादी परंपरा से बाहर नहीं निकल पाया है। आज भी ग्रामीण स्तर पर समाज में रहने के लिए कई फैसलों को नहीं मानने पर समाज द्वारा बहिष्कार किए जाने का दंश झेलना पड़ता है। आज एक ऐसा ही मामला मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले से आया है, जहां लामता थाना क्षेत्र के मोतेगांव गोंड जनजाति के 14 परिवारों को दुर्गोत्सव में चंदा नहीं देना भारी पड़ गया और उनके परिवार का सामाज से बहिष्कार कर दिया गया।

आज भी व्याप्त है रूढ़िवादी कुरितियां


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।