ग्वालियर, अतुल सक्सेना। ग्वालियर प्रवास पर मौजूद राष्ट्रीय स्वसंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन भागवत (RSS Sarsanghchalak Dr. Mohan Bhagwat) ने रविवार को केदारपुर पर शहर के प्रमुख संगीत साधकों के साथ चर्चा की। RSS प्रमुख (RSS Chief) ने कहा कि अपनी कला, संस्कृति, इतिहास व संगीत को सहेजने और विरासत को संजोने में मुख्य भूमिका समाज की रहती है। अगर समाज इस दिशा में जागरूक हो और उसमें मजबूत इच्छा शक्ति हो तो सरकारें भी उस पर गंभीरता से विचार करती हैं।
संगत साधकों से संवाद के दौरान संगीत के क्षेत्र की प्रमुख हस्तियों से संघ प्रमुख भागवत ने आव्हान किया कि वह भारतीय संगीत की समृद्ध विरासत को संजोकर तो रखें ही, साथ ही इसको नई पीढ़ी तक पहुंचाने का भी काम करें। उन्होंने कहा कि यह काम बेहद आवश्यक है और बड़े संगीत साधक इसमें प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं।
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इस अवसर पर संघ प्रमुख ने सभी संगीत साधकों को घोष की सीडी और पेन ड्राइव भेंट करते हुए बताया कि पहले संघ का घोष पाश्चात्य संगीत की धुनों पर आधरित था लेकिन बाद में घोषवादक स्वयंसेवकों ने भारतीय संगीत के जानकारों के साथ मिलकर शास्त्रीय संगीत पर आधारित रागों से जुड़ी रचनाएं तैयारी की, अब उन्हें ही बजाया जाता है।
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संगीत साधकों ने सुझाव दिया कि सरकार की ओर से संगीत को प्राथमिक स्तर से ही शिक्षा में अनिवार्य किया जाना चाहिए। इसपर जवाब देते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि अगर आप लोग समाज में इस तरह की जागृति पैदा करेंगे तो निश्चित ही इस पर काम भी हो सकेगा। एक और सुझाव देते हुए संगीत साधकों ने कहा कि बच्चों को स्कूलों में शिक्षा के साथ-साथ भारतीय कला, संस्कृति और इतिहास की जानकारी दी जानी चाहिए। इसका जवाब देते हुए संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आप स्कूलों में जाएं, शिक्षकों, प्राचार्यों और संचालकों से मिलें और अपनी बात रखें। किसने रोका है, ऐसा करिए परिणाम आने लगेंगे।
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चर्चा के दौरान राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर साहित्य कुमार नाहर, पंडित सुनील पावगी, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़े गायक जयंत खोत, बांसुरीवादक संतोष संत, सितारवादक श्रीराम उमड़ेकर, शास्त्रीय संगीत गायक साधना गोरे, वीणा जोशी, संजय धवले, अभिजीत सुखदाणे आदि सहित अनेक संगीत साधक उपस्थित रहे।