मामला आज से 8 साल पहले का है जब 1 नवम्बर 2014 को पूर्व सरपंच शिवलाल कुशवाहा ने अपने दर्जनभर साथियों के साथ मिलकर अमझर गांव पहुंचे। जहां उन्होंने दबंगई करते हुए वहां मजदूरों से झोपड़ियां खाली करने को कहा। जिसके बाद मजदूरों ने कहा कि, तहसील का जैसा आदेश होगा, वे वैसा ही करेंगे और जब तक तहसील से प्रकरण पर फैसला नहीं आ जाता तब तक उन्हें वहां रहने दिया जाए।
जिसके बाद पूर्व सरपंच ने उनकी बात नहीं सुनी और उनसे मारपीट करने लगे। केवल इतना ही नहीं, मारपीट करने के बाद झोपड़ियों को तोड़ डाली और अंत में उन्होंने झोपड़ियों में आग लगा दी और उन्हें बेघर कर दिया। जिसमें सुंदर मुड़हा, मदन कोल, विमला कोल, सुनीता कोल, रेखा कोल, जियानी कोल, आशा कोल, विमला साकेत, सोहनलाल साकेत, बाबूलाल साकेत, रनिया कोल, शांति कोल, गीता कोल, सुखरनिया साकेत, राजन कोल, मुन्नी कोल, भगवानदास कोल, फुल्ला कोल, छोनी कोल, होरीबाई कोल और प्रेमवती कोल की झोपड़ी उनके आंखों के सामने जलकर खाक हो गए।
जिसके बाद घटना की शिकायत की गई और आज करीब 8 साल के बाद एससी एसटी एक्ट की विशेष अदालत के न्यायाधीश एससी राय ने पूर्व सरपंच शिवलाल कुशवाहा समेत 11 दोषियों को भादवि की धारा 436, 323, 147, 148 व एससी-एसटी एक्ट के तहत 7 साल की जेल सहित 4 हजार रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। बता दें कि इस घटना में लल्ला प्रसाद कुशवाहा, दिलीप कुशवाहा, सरमन कुशवाहा, उदित कुशवाहा, रामायण कुशवाहा, चंदू कुशवाहा, जयराम कुशवाहा, गोरेलाल कुशवाहा, रामभगत कुशवाहा और प्रदीप कुशवाहा शामिल हैं। जिन्हें कोर्ट ने सजा सुनाई है।