मां शारदा का एक ऐसा मंदिर जहां अमर ‘आल्हा-ऊदल’ करते हैं देवी की पूजा, जानें रहस्यमयी कहानी

Lalita Ahirwar
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सतना, पुष्पराज सिंह बघेल। मध्यप्रदेश (Madhya pradesh) के सतना जिले (Satna district) में स्थित मैहर धाम (Maihar dham temple) विश्व प्रसिद्ध है। यह मां भवानी के 51 शक्तिपीठों में से एक है। यह आदि शक्ति मां शारदा (Maa Sharda) देवी का मंदिर मैहर नगर के पास विंध्य पर्वत श्रेणियों के मध्य त्रिकूट पर्वत पर स्थित है। मैहर पर्वत का नाम प्राचीन धर्म ग्रंथों में मिलता है और इसका उल्लेख भारत के अन्य पर्वतों के साथ पुराणों में भी आया है। ऐसी मान्यता है कि मां शारदा की पहली पूजा आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा की गई थी। मैहर की माँ शारदा की नगरी में हर वर्ष शारदेय नवरात्रि और चैत्र नवरात्रि पर मेला लगता है, जहाँ दूर दूर से देवी भक्त अपनी अपनी मुरादें लेकर पहुंचते हैं। आपको बता दें, इस मंदिर में भक्त 1063 सीढ़िया चढ़कर माता के दर्शन के लिये पहुंचते हैं। यहां पर प्रतिदिन हजारों दर्शनार्थी और श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

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मां शारदा का एक ऐसा मंदिर जहां अमर ‘आल्हा-ऊदल’ करते हैं देवी की पूजा, जानें रहस्यमयी कहानी

माना जाता है कि माँ शारद ने कलयुग में अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर आल्हा को अमरता का वरदान दिया था। कहा जाता है कि आज भी माँ शारदा की पहली पूजा आल्हा देव ही करते हैं। कोरोना संकट के चलते यहां पिछले तीन मेले नहीं लग सके, लेकिन इस वर्ष करोना कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए आम भक्तो को माँ के दिव्य दर्शन करने का मौका मिलेगा। वहीं आज से नवरात्रि के महापर्व के शुरुआत हो चुकी जहां मैहर के इस मंदिर में भक्तों का तांता लगता नज़र आ रहा है। आज पहले दिन यहां सुबह 4 बजे मां शारदा की आरती की गई जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे।

ऐसी हैं मां शारदा की कहानी

ऐसा माना जाता है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन उनकी इच्छा राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी, फिर भी माता सती ने अपनी ज़िद पर भगवान शिव से विवाह कर लिया। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया उस, यज्ञ में ब्रह्मा-विष्णु-ईंद्र और अन्य देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया, लेकिन भगवान शंकर को नहीं बुलाया। यज्ञ स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से भगवान शिव को आमंत्रित ना करने का कारण पूछा,  इस पर राजा दक्ष ने भगवान शंकर को अपशब्द कहे। अपमान से दुखी होकर माता सती ने यज्ञ अग्नि कुंड में कूद कर अपने प्राणों की आहुति दे दी। भगवान शंकर को जब इस बारे में पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया।

ब्रह्मांड की भलाई के लिए भगवान विष्णु ने सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया और जहां भी सती के अंग गिरे वहां शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। ऐसा माना जाता है कि मैहर में भी माता सती का हार गिरा था, जिसकी वजह से मैहर का नाम पहले मां का हार अर्थात ‘माई का हार’ था जो अप्रभंश होकर मैहर नाम पड़ गया। इसीलिए 52 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ मैहर माँ शारदा देवी के मंदिर को माना गया है।

आल्हा-ऊदल की पूजा से प्रसन्न हुई थी मां शारदा

त्रिकूट पर्वत की चोटी पर ये मंदिर लोगों की आस्था का क्रेंद बन चुका है। हर दिन यहां देश-विदेश से माई के भक्त सिर्फ एक झलक देखने पहुचते हैं। इस मंदिर का ऐतिहासिक महत्व भी है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर आल्हखंड के नायक आल्हा और ऊदल दो सगे भाई मां शारदा के अनन्य उपासक थे। आल्हा-ऊदल ने ही सबसे पहले जंगल के बीच मां शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 साल तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें प्रसन्न होकर अमर होने का आशीर्वाद दिया था। मां शारदा मंदिर प्रांगण में स्थित फूलमती माता का मंदिर, आल्हा की कुल देवी का है, जहां विश्वास किया जाता है कि प्रतिदिवस ब्रम्ह मुहूर्त में स्वयं आल्हा द्वारा मां की पूजा अर्चना की जाती है। मां के मंदिर के तलहटी में आज भी आल्हा देव के अवशेष हैं। उनकी तलवार और खड़ाऊ आम भक्तों के दर्शन के लिए रखी गई है। यहां आल्हा तालाब भी है जिसे प्रशासन ने संरक्षित किया है और सूचना बोर्ड में भी इस तालाब के एतिहासिक और धार्मिक महत्व का वर्णन है। यहां आल्हा-ऊदल का अखाड़ा भी है।


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