सीहोर, अनुराग शर्मा। मप्र (MP) के सीहोर (Sehore) के ग्राम धबोटी (Ghaboti) में दीपावली (Diwali) के एक दिन बाद एक पौधे को उखाड़ने की प्रथा आज भी बेहद ही रहस्यमयी है। इसके रहस्य इतिहास के गर्त में छिपे हुये है। लेकिन आज भी करीब एक दर्जन से अधिक गांवों के लोग हजारों की संख्या में इस प्रथा के साक्षी बनते है और गांव पर स्थित खुटियादेव (Khutiyadev) की आस्था और उत्साह के साथ पूजा अर्चना करते है और इस साल भी यहां पर आस्था के साथ मेले का आयोजन किया गया था। इस मेले में सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु शामिल थे।
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गोवर्धन पूजन पर उमड़ा जनसैलाब
करीब 100 सालों से अधिक समय से यहां लोग धबोटी के समीपस्थ पर हर साल दीपावली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजन के पावन अवसर पर हर साल हजारों की संख्या में मवेशियों के स्वास्थ्य सहित अन्य कामनाओं को लेकर यहां पर आते है। यहां पर मंदिर में मौजूद देवता की पूजा अर्चना पूरी आस्था और विश्वास के साथ करते हैं। शुक्रवार को भी अपनी मनोकामनाओं को लेकर काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे थे।
इस संबंध में जानकारी देते हुए ग्राम धबोटी के उपसरपंच ईश्वर सिंह ठाकुर ने बताया कि पौधा उखाड़ने की प्रथा 100 सालों से अधिक समय से चली आ रही है। लेकिन अभी तक किसी ने भी इस दुर्लभ पौधे को नहीं उखड़ा है। उन्होंने बताया कि गांव के चौकीदार पटेल जगदीश प्रसाद के मार्गदर्शन में विशेष पूजा अर्चना के साथ ग्राम में स्थित खुटियादेव के मंदिर परिसर में पुवाडिया का दो फिट का पौधा जमीन के चार इंच के करीब गड़ा हुआ है और सुबह यहां पर आने वाले श्रद्धालु खुटियादेव के दर्शन करने के पश्चात उखाड़ने का प्रयास करते हैं। लेकिन यह चार इंच जमीन में गढ़ा हुआ पौधा चार-पांच लोगों के अथक प्रयास के बाद भी जमीन से ठस से मस नहीं होता। एक तरफ तो देश चांद पर जा चुका है।लेकिन ग्राम धबोटी में हर साल इस तरह की दिव्य प्रथा होती है।
15 हजार से अधिक श्रद्धालु हर साल साक्षी के रूप में मौजूद रहते हैं
ग्राम के सरपंच देव सिंह और उप सरपंच ईश्वर सिंह ने बताया कि हमारे बुजुर्गों से मिली जानकारी के अनुसार दिवाली के दूसरे दिन ग्राम धबोटी में छोटा बारहखंबा से नाम से इस प्रसिद्ध मेले और पौधा उखाड़ने की इस अद्भूत घटना में करीब 15 हजार से अधिक श्रद्धालु हर साल मौजूद रहते हैं। लेकिन इस साल कोरोना संकट काल के कारण मेले में कुछ संख्या कम थी इसके बावजूद बड़ी संख्या में ग्रामीण और क्षेत्रवासी श्रद्धा और विश्वास के साथ उपस्थित होते है।