Siyaram Baba: मध्य प्रदेश के निमाड़ क्षेत्र के सुप्रसिद्ध संत सियाराम बाबू अपने तप, साधना और निस्वार्थ सेवा के लिए जाने जाते थे। उन्होंने समाज और धर्म के प्रति ऐसी मिसाल कायम की, जो सदियों तक लोगों को प्रेरित करती रहेगी। बाबा ने अपने पूरे जीवन में सादगी और त्याग का पालन किया।
आपको यह जानकर हैरानी होगी कि बाबा भक्तों से चढ़ावे के रूप में मात्र 10 रूपये ही स्वीकार करते थे, लेकिन मां नर्मदा के संरक्षण, राम मंदिर निर्माण और शिक्षा के उत्थान के लिए वे करोड़ों रुपए का दान कर देते थे।
मोक्षदा एकादशी के दिन त्याग दी देह
बुधवार सुबह 6 बजे के लगभग, मोक्षदा एकादशी के पावन दिन पर बाबा ने अपनी देह त्याग दी। आपको बता दें, वे लंबे समय से बीमार चल रहे थे और आश्रम में ही उनका इलाज हो रहा था। बाबा के निधन की खबर सुनते ही भक्तों में शोक की लहर दौड़ गई और बड़ी संख्या में लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए उनके आश्रम पहुंचने लगे। बताया जा रहा है कि आज शाम 4 बजे उनका अंतिम संस्कार नर्मदा नदी के तट पर किया जाएगा।
बाबा के द्वारा किया गया दान
बाबा ने नर्मदा नदी के घाटों की मरम्मत के लिए 2 करोड़ 57 लाख रुपए का बड़ा दान दिया था। साथ ही अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण के लिए भी ढाई लाख रुपए का सहयोग किया। इसके अलावा शिक्षा विकास के लिए उन्होंने स्कूल कॉलेजों को ढाई करोड़ से अधिक की धनराशि दान की।
बिना माचिस के जलाते थे दीपक
बाबा की आध्यात्मिक सिद्धियां भी उन्हें अद्वितीय बनाती थी। ऐसा भी कहा जाता है कि वह बिना माचिस का उपयोग किए ही दीपक जलाते थे। उनके भक्तों ने इस चमत्कार से जुड़े कई वीडियो यूट्यूब पर भी शेयर किए हैं, जिनमें बाबा की अलौकिक शक्तियों और साधना की गहराई को देखा जा सकता है।
109 की उम्र में भी बाबा बिना चश्मे के रामायण पढ़ते थे
सियाराम बाबा की भक्ति का एक और विशेष पहलू उनकी रामायण के प्रति श्रद्धा थी। उन्होंने अपने अंतिम समय तक रामायण का पाठ नहीं छोड़ा। 109 वर्ष की उम्र में भी बाबा बिना चश्मे के रामायण का पाठ करते थे और अपना हर काम खुद से किया करते थे। वे बहुत कम बोलते थे, लेकिन उनकी तपस्या और सरल जीवनशैली उनके भक्तों को गहराई से आकर्षित करती थी। बाबा अपने प्रत्येक भक्त को पूर्ण उदारता से सफल और सुरक्षित जीवन का आशीर्वाद देते थे।
हनुमान जी के परम भक्त थे
सियाराम बाबा हनुमान जी के परम भक्त थे। उन्होंने हमेशा रामचरितमानस का पाठ किया और इसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाया। बताया जाता है की सातवीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद बाबा एक संत के संपर्क में आए थे , जिनसे प्रेरित होकर उन्होंने अपना घर परिवार त्याग दिया और प्रभु सेवा का मार्ग अपनाया। इसके बाद वे तपस्या के लिए हिमालय चले गए, जहां उन्होंने कठोर साधना से आध्यात्मिक ऊंचाइयां प्राप्त की।
खरगोन गांव के लोग बाबा को हनुमान जी का अवतार मानते हैं और उन्हें भगवान हनुमान की छवि देखते हैं। बाबा के प्रति उनकी आस्था इतनी गहरी है कि वह उन्हें न सिर्फ संत बल्कि दिव्य शक्ति का स्त्रोत मानते हैं।
अपने हाथों से भक्तों को चाय पिलाते थे
कहा जाता है कि वह अपने हाथों से भक्तों को चाय पिलाते थे और उनकी केतली में चाय कभी खत्म नहीं होती थी। यह चमत्कार भी उनकी सेवा, भावना और दिव्य शक्ति का प्रतीक माना जाता है। बाबा के जन्म स्थान को लेकर मतभेद होते रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि उनका जन्म महाराष्ट्र के किसी जिले में हुआ था तो वहीं कुछ लोग इस बात को गलत ठहराते हैं।