मध्य प्रदेश की सड़कों पर निकलना अब सिर्फ ट्रैफिक का झंझट नहीं रह गया है। हाईवे हों या शहर की गलियां हर जगह आवारा मवेशियों (Stray Cattle) का डर जैसे आम जिंदगी का हिस्सा बन गया है। लोग रोज़मर्रा के सफर में भी यही सोचकर निकलते हैं कि कहीं अचानक कोई पशु सामने न आ जाए।
इसी बढ़ती समस्या पर अब राजनीतिक हलचल भी तेज हो गई है। प्रदेश में हर तीसरे दिन किसी न किसी की जान चली जा रही है, और सरकार के पास न इसका पूरा रिकॉर्ड है, न मुआवजा देने की व्यवस्था। कांग्रेस ने विधानसभा में सवाल उठाए तो कई चिंताजनक बातें सामने आईं, जिन्हें समझना ज़रूरी है, क्योंकि यह सिर्फ सड़क सुरक्षा का मुद्दा नहीं, बल्कि लाखों लोगों की जान और किसानों की मेहनत से जुड़ा सवाल है।
हर तीसरे दिन एक मौत
मध्य प्रदेश में आवारा मवेशियों की समस्या अब लोगों की जान पर भारी पड़ रही है। पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, पिछले दो सालों में ऐसी 237 सड़क दुर्घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें 94 लोगों ने अपनी जान गंवाई और 133 लोग घायल हुए। कांग्रेस विधायक अजय अर्जुन सिंह ने विधानसभा के अंदर यह मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया। उन्होंने जिलेवार आंकड़े, हादसों की पूरी रिपोर्ट और किसानों के नुकसान का ब्यौरा मांगा।
रिकॉर्ड है, लेकिन साफ जानकारी नहीं
पशुपालन एवं डेयरी मंत्री लखन पटेल ने लिखित जवाब में कहा कि जिलेवार डेटा तो मौजूद है, लेकिन पुलिस रिकॉर्ड में घरेलू और आवारा पशुओं के हादसों में फर्क ही नहीं किया गया है। इसका मतलब यह है कि सरकार के पास यह ठोस जानकारी नहीं है कि सड़क पर हो रहे हादसों का असली कारण क्या है। यह भी सामने आया कि किसानों की फसलों को आवारा मवेशियों से कितना नुकसान पहुंचा, इसकी कोई गिनती किसी विभाग ने नहीं की है। चौंकाने वाली बात यह भी है कि ऐसे नुकसान पर मुआवजा देने का कोई सिस्टम ही मौजूद नहीं है।
गौशालाओं पर भारी दबाव, सड़कों पर फिर भी भरे मवेशी
सरकार ने माना कि पूरे प्रदेश में गौशालाओं पर काफी दबाव है। मुख्यमंत्री गौसेवा योजना के तहत पंजीकृत गौशालाओं में करीब 4.5 लाख मवेशी रखे गए हैं। इनके खाने-पीने और देखभाल के लिए सरकार ने साल 2025-26 में लगभग 296 करोड़ रुपये तय किए हैं। लेकिन इन इंतजामों के बावजूद सड़कों पर आवारा मवेशियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। शहरों के चौराहों, हाईवे, गांवों की गलियों और खेतों में शाम ढलते ही मवेशियों की भीड़ आम दृश्य बन चुकी है। इससे न सिर्फ दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ रहा है, बल्कि किसानों की फसलें भी रोज़ भारी नुकसान झेल रही हैं।





