टीकमगढ़: सिस्टम की खुली पोल, राशन कार्ड होने के बावजूद बेर और नमक खाने को मजबूर गरीब परिवार

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टीकमगढ़, आमिर खान। देश भर में कोरोना (Corona) की दूसरी लहर ने एक बार फिर गरीब परिवारों की कमर तोड़ दी है, जिसके कारण कई गरीब परिवार दाने-दाने के लिए मोहताज हो गए हैं। वही ऐसे में ग्रामीण अंचलों में रहने वाले आदिवासी परिवारों की हालत बहुत खराब है। कोरोनाकाल में कोरोना कर्फ्यू (Corona curfew) के बाद रोजगार नहीं मिलने के कारण टीकमगढ़ (Tikamgarh) के मांची गांव का एक आदिवासी परिवार इन दिनों रोटी के लिए मोहताज है। जो बेर और नमक खाकर पेट भरने को मजबूर है। इस आदिवासी के परिवार में दस लोग हैं और सरकारी राशन सिर्फ दो लोगों का दिया जाता है। ऐसे में आठ लोगों का राशन मेहनत मजदूरी कर मुहैया होता था, लेकिन अब मजदूरी न मिलने के कारण अभी के लिए पर्याप्त खाना भी नहीं मिल पा रहा है। इसलिए मजबूरन यह परिवार अपनी भूख मिटाने के लिए बेर और नमक खाने को मजबूर हैं।

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मशीनों ने छीना रोजगार
टीकमगढ़ जिले के जतार जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायत मांची के हरिश्चंद्र आदिवासी बताते हैं कि सरकार द्वारा चलाई जा रही किसी भी योजना का उन्हें लाभ नहीं मिलता है। वे बेहद गरीब हैं इसके बाद भी उन्हें योजनाओं से वंचित रखा जाता हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ग्राम पंचायत द्वारा शासकीय कार्यों को मजदूरों की जगह मशीनों से कराया जाता है, जिससे उन्हें मजदूरी करने गांव के बाहर जाना पड़ता है। अब इस लॉकडाउन में बाहर आ जा नहीं सकते। ऐसे में सरकारें भी कहती हैं कि गांव में ही मजदूरों को काम दिया जाए, जिससे वह रोजगार के लिए परेशान न हों और भरण पोषण कर सकें, इसके बावजूद भी इस पंचायत में मजदूरों का कार्य मशीनों से कराया जाता है। इसलिए ऐसे गरीब परिवार रोटी के लिए परेशान होते हैं और मजबूरन उन्हें बेर व नमक खाकर पेट भरना पड़ता है।

500 रूपए लेकर भी नहीं जोड़े नाम
वहीं हरिश्चंद्र ने बताया कि उनके परिवार में 10 सदस्य हैं लेकिन उनके परिवार के सिर्फ 2 सदस्यों को ही सरकारी राशन दिया जाता है। कई बार सरपंच सचिव से गुहार लगाने के बाद भी हमारे परिवार के नाम राशन कार्ड में नहीं जोड़े गए। इसके साथ सचिव ने दो बार 500-500 रूपये भी लिए और नाम नहीं जोड़े। जिसके वजह से अब उनका परिवार बेर और नमक खाने को मजबूर है क्योंकि भूखे पेट तो नींद नहीं आती।

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Harpreet Kaur

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